कविता

कैसे बताऊं मैं तुम्हें

कैसे बताऊं मैं तुम्हें
मेंरी दृष्टी का दर्पण हो तुम
दिल में छुपे हर अनकहे
 विचारों का वर्णन हो तुम
गीतों का मेंरे शब्द तुम
 संगीत का सुर ताल हो
मेंरे कांपते होठों की इस
 आवाज का गुंजन हो तुम
तुम भोर की पहली किरण
 कुंतल को सहलाते मेंरे
जो श्रवण में घोल दे मिठास
प्रभात के वो वचन हो तुम
जाड़े की घूप हो गुनगुनी
 बारिश की चपल फुहार हो
अलबेली पुरवा बयार हो
 मेंरे तो नील गगन हो तुम
तुम चांद ह्दयाकाश के
 आंखों के हो तारे तुम्हीं
मेंरी आत्मा का प्रकाश हो
 चलती हुई धड़कन हो तुम
आंखो में तुम सांसों में तुम
 यादों में तुम बातों में तुम
होठों की तुम मुस्कान हो
 मन में बसे वो मन हो तुम
मेंरी आत्मा की हो साधना
 परमात्मा की हो वंदना
मेंरे हृदय तन मन अहं का
 संपूर्ण समर्पण हो तुम
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 [email protected] प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है