पिछले साल पुराने 500 व 1000 की करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं होने के बाद नए 500 व् 2000 के करेंसी नोट के चलन से भ्रष्टाचार ,नकली करेंसी रोकने आदि हेतु उपायों को चलन में लाया गया था किन्तु इसमें कुछ व्यवहारिक परेशानी का सामना आम लोगो से लेकर खास लोगो करना पड़ा था । लोगो ने सोचा धीरे धीरे इसका भी कुछ न कुछ समाधान अवश्य निकलेगा ही । उस समय टीवी पर पुराने करेंसी नोट बदलवाने की खबरे प्रसारित हो रही थी और फेसबुक -वाट्सअप पर इसके त्वरित समाचार के लिए और समाधान हेतु घर परिवार की नजरें ताजे समाचारों हेतु मानों पलक पावड़े लिए बैठी हुई रहती थी |
घर के अंदर से पति महोदय को पत्नी ने आवाज लगाई -नहा कर बाजार से सब्जी -भाजी ले आओ| किन्तु पति महोदय को लगा फेस बुक का चस्का । वे फेस बुक के महासागर में तैरते हुए मदमस्त हुए जा रहे । बच्चे पापा से स्कूल ले जाने की जिद कर रहे थे की स्कूल में देर हो जाएगी । काम की सब तरफ से पुकार हो रही मगर जवाब बस एक मिनिट । महाशय नाइस ,वेरी नाइस की कला में माहिर हो गए थे । मित्र की संख्या में हजारों का इजाफा से वे मन ही मन खुश थे किन्तु पडोसी को चाय का नहीं पूछते |
इसका यह भी कारण हो सकता उन्हें फुर्सत नहीं हो । दोस्तों में काफी ज्ञानी हो गए थे । मित्र भी सोचने लगे कि यार ये इतना ज्ञान कहा से लाया | इससे पहले तो ये हमारे साथ दिन भर रहता और हमारी देखी हुई फिल्म की बातें समीक्षा के रूप में सुनता रहता था । एक दिन मोहल्ले वाले मित्रों ने सोचा इनके घर चल कर के पता किया जाए | ठंड में गरमागरम चाय भी मिल जायगी । मित्रों ने घर के बाहर लगी घंटी दो चार बार बजाई।अंदर से आवाज आई- जरा देखना कौन आया है। उन्हें उठ कर देखने की भी फुरसत नहीं मिल रहे थी ।
दोस्तों ने कहा -यार आज कल दिखता ही नहीं क्या बात है । हमने सोचा कही तू बीमार तो नहीं हो गया हो इसलिए खबर लेने और करेंसी 500 ओर 1000 रूपये बंद होने और नए 10,20,50,100,500 व् 2000 की नए रंगीन करेंसी नोट आगए की खबर शायद तुझे पता ना हो।वर्तमान में 10,20 के सिक्के भी आगए है।खबर बताने और तेरी तबियत देखने आए है।पता नहीं दिख नहीं रहा तो शायद खबर मालूम न हो ।
घर में देखा तो भाभीजी वाट्सएप में अपने रिश्तेदारों को त्योहारों की फोटो सेंड करने में सर झुकाये तल्लीन और कुछ बच्चे भी इसी मे लगे थे।अब ऐसा लग रहा था कि फेसबुक और वाट्सअप में जैसे मुकाबला हो रहा हो। घर के काम का समय मानो विलुप्तता की कगार पर जा खड़ा हुआ हो।सब जगह चार्जर लटक रहे थे। मोबाइल यदि कही भूल से रख दिया और नहीं मिला तो ऐसा लगता जैसे कोई अपना लापता हो गया हो | दिमाग में चिड़चिड़ापन ,हिदायते ,उभर कर आना मानों रोज की आदत बन गई हो। चार्जिग करने के लिए घर में ही होड़ होने लगने लगी। बैटरी लो हो जाने से सब एकदूसरे को सबूत पेश करने लगे ।
वाकई इलेक्ट्रॉनिक युग में प्रगति हुई किन्तु लोग रिश्तों और दिनचर्या में कम ध्यान देकर अधिक समय और आभासी दुनिया के फेसबुक और वाट्सएप और मोबाइल परअन्य ऐप पर केंद्रित करने लगे है । पहले 500 और 1000 हजार की करेंसी बदलने की चिंता थी और नए मिलने वाले रंगीन करेंसी नोटों की खुशी थी ।शुरू शुरू में गांव -शहर में करेंसी बदलवाने को ले जाते हुजूम से बैंक और डाकघर चर्चित हुए वही कोई परिचित किसी से यही पूंछता आप कहा हो। वो एक ही पता बताता था की – मै बैंक या डाक घर में हूँ ।वर्तमान में नई रंगीन करेंसी वाले नोटो की रंगीन माला पहन कर दूल्हा खुश है।किंतु कोरोना गाइड लाइन के पालन में प्रोसेशन निकालते समय संख्या सीमित होने से नोटो को नाचने वाले पर घुमा कर बैंड बाजे वालो को दिया जाने में कमी अवश्य आई।साथ ही 2000 के छुट्टे हेतु थोड़ी बहुत परेशानी भी सामने आई।खैर कुल मिला कर रंगीन करेंसी को पर्स में रखने से पर्स का सौंदर्य अवश्य निखर गया।किंतु डिजिटल करेंसी आने की हवा जोर शोर से होने पर पर्स अभी से उदास है।शादी में नोट नाचने वालो पर उतारने वाले भी हवा सुनकर उदास है।मेहमान जाते समय बच्चों के हाथ मे स्नेह स्वरूप पैसे देने का चलन से डिजिटल करेंसी होने की हवा से बच्चे नगद न पाकर उदास रहेंगे।
— संजय वर्मा “दॄष्टि”