गीत
कोयल बिन सूनी अमराई ।
चुभती यादों की पुरवाई ।
तुम बिन चंदा रोया होगा ,
आँसू लटके हैं पत्तों पर।
तुम गीतों का अलंकार हो,
तुम बिन सूने लगतें हैं स्वर।
मेरी नींद तोड़ देती है,
अक्सर सपनों की अंगड़ाई ।
कोयल बिन………………
बागों में बसंत आया है,
नई कोपलें डाली डाली।
दिग दिगंत अतिशय हर्षित हैं,
हवा चल पड़ी सौरभ वाली।
उर पे है हिमपात विरह का,
यादों की कमजोर रजाई ।
कोयल बिन…………..
पाकड़ देखो हुई चंपई,
बागों में रसाल बौराये ।
कलियों को जूठा करने को,
देखो लोलुप भौंरे आये ।
फूलो का दुलार करने को
रंगबिरंगी तितली आई ।
कोयल बिन……………
—————© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी