मँहगाई
ओ मँहगाई ओ मँहगाई
ना जाने तूँ कहाँ से आई
आम जन को है तुँने रूलाई
अब तो रसोई पर आफत आई
सरसों तेल कल तक चुप था
अब तो दो सौ की कहता था
चानी ने भी आँखें दिखलाई
डीजल पेट्रोल बन गई कसाई
तुँ आफत बन कर है आई
चावल दाल भी कड़क दिखाई
आम जन किस से करे दुहाई
कोई नहीं सुनता जग भाई
गरीब गुरूबा की तूँ कमर तोड़ दी
मध्यम वर्ग की हिम्मत चूर दी
बाजार को तुम भाव दिया है
उपभोक्ता को परेशान किया है
हर वस्तु की मूल्य है बढ़ाई
तुमको समझ क्यूँ नही आई
दिन दूना रात चौगुना बढ़ाई
तुँने जन मानस से की बेवफाई
ओ मँहगाई ओ मँहगाई
अब तक तुम को शरम ना आई
हर कोई तुमसे करेगा लड़ाई
अब तो अपने पर लगाम दो भाई
— उदय किशोर साह