सामाजिक

ज़िंदगी और कुछ भी नहीं

“ज़िंदगी के कुछ किरदार ज़िंदगी को बहुत प्यारे होते है गुलाब से, कुछ अनमने मोगरे, तो कुछ नज़र अंदाज़गी के शिकार गेंदा फूल से होते है”
ज़िंदगी के रंगमंच पर अलग-अलग इंसान तीन प्रकार की ज़िंदगी जीते है। एक जो हम जी रहे होते, है, दूसरी जो हम जीना चाहते है और तीसरी चाहकर भी जी नहीं पाते है। मतलब जो हासिल है वह जद्दोजहद है, जो पाना चाहते है वह ख़्वाहिश है और जो मिल नहीं रही वह खुन्नस है।
जीते तो सभी है पर कुछ ही ज़िंदगी में सही मायने में जीवन होता है। कुछ लोगों को सबकुछ सहजता से मिल जाता है। जैसे टाटा, बिरला, अंबानी, अदानी मानों माँ की तरह मेहरबान होते ज़िंदगी सारे सुख परोसती है। बैठे बिठाए सब सुख इनके चरणों में खेलते है, दास बनकर। ऐसे लोग (गोल्डन स्पून) यानि की सोने की चम्मच मुँह में लेकर धरती पर जन्म लेते है। उपर कहाँ कुछ है साहब, ऐसे लोगों के शौक़ पालता स्वर्ग स्वयं उनके साथ-साथ धरती पर चलता है। उनकी हर ख़्वाहिश पर ईश्वर की ओर से तथास्तु का आशीर्वाद मिलता है। नो डाउट उनके पुरखों ने पसीना बहाया है। कहने का मतलब जिंदगी के रंगमंच के ये वही किरदार है (फ़ेवरिट) जिनकी आसानी से कट रही होती है। तब महसूस होता है स्वर्ग-नर्क जैसा उपर कुछ नहीं जो कुछ है यहीं धरती पर ही है। उनको ख़्वाहिश करनी नहीं पड़ती काश शब्द कोसों दूर दिखता है।
उससे विपरित आम इंसान आस और काश के दो पाटन के बीच पिसते, वैसी ज़िंदगी जीने ख़्वाहिश को पालते, महज़ खुली आँखों से सपनें देखते जद्दोजहद में पसीजते कुछ न कुछ ढूँढता रहता है। एक सिरा जोड़ते ही दूसरा ज़र्रज़रित हो जाता है। उम्मीदों पर दुनिया कायम है, सूरज रोशनी हर किसीको देता है एक दिन किस्मत के आगे पड़ा बदनसिबी का पत्ता जरूर हटेगा, शानों शौकत मेरे आँगन भी खेलेगी। काश इतना मिल जाता तो ऐश होती। पर साहब उम्र का पाव हिस्सा बाकी बचता है फिर भी इंतज़ार के टीले पर बैठे उम्मीद को पालना कोई आम इंसान से सीखें। मिलता कुछ नहीं पर सपने देखने से बाज़ नहीं आते।
उससे भी हटकर एक वर्ग है जो जूझते जीवन बिताता है। वह ख़्वाहिश नहीं करते। कोरी हथेलियों में सुख की कोई लकीर ही नहीं होती उम्मीद लगाए भी तो कहाँ? तभी ज़िंदगी के प्रति नफ़रत और नाराज़गी लिए उम्र का सफ़र ढ़ोता रहता है। न उनकी कल्पनाओं में खुशियाँ दस्तक देती है, न सपने में सुनहरा सूरज दिखता है। टोटली ब्लेक ऐंड व्हाईट लाइफ़। उपर आसमान नीचे धरती  कितना भी हाथ पैर मारे ज़िंदगी हाथताली देते पहलू से पिक बू करती  गुज़र जाती है। बिना मंज़िल वाले रास्ते पर दौड़ता रहता है बंदा, सुख की सीढ़ी का पहला पायदान ही नहीं मिलता। नासाज़गी और खुन्नस उनके चेहरे के ज़ेवर होते है। जन्म तो लेते है पर जीते नहीं, बस किरदार निभाते निकल जाते है।
क्या समझे इस ज़िंदगी को? कर्म फल की कुंडली, या कोई तिलिस्मी रहस्य जो कभी समझ में नहीं आने वाला। खैर ज़िंदगी और कुछ भी नहीं, जन्म लिया है तो ज़िंदगी के रंगमंच पर अपने-अपने किरदार को निभाते जाना है। कर्मों की गति न्यारी है, मर कर कौन वापस आया है? किसे पता उपर क्या है।भगवद् गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है,
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि।।
अच्छे कर्म करते जाओ क्या पता अगले जन्म हम भी स्वर्ग साथ लेकर जन्में। (with golden spoon in mouth)
— भावना ठाकर ‘भावु’ 

*भावना ठाकर

बेंगलोर