इश्क
खुद से ही अब इश्क हो गया है
बाहर नहीं अब
अपने में ही मन रमने लग गया है
जवानी ने साथ छोड़ा
बुढ़ापे ने हाथ थाम लिया है
यह शायद उसी का हैंगओवर है
जो दिल को बाहर नहीं
भीतर रास आने लगा है
ज्यों ज्यों
इश्क का यह रंग बढ़ रहा है
त्यों त्यों मन की चादर का रंग
और गहरा होता जा रहा है