कविता

दीवारें

दीवारें चाहे
मिट्टी से लिपि हों
या फिर ईंट , पत्थर, गारे
या सीमेंट से
सुनती है सब
जो घटता है इनके बाहर
या फिर अंदर
सुनती हैं ये
 सिसकियां भी
 चहचहाहट भी
 खिलखिलाहट भी
महसूस करती हैं
उदासियों को
तन्हाईयों को
बेबसी को
प्यार को
गुस्से को
दीवारें भली ही
होती हैं बेजान
पर बसी होती है
जान उन अपनों की
जो इसके इर्द गिर्द
रहते हैं
बस्ते हैं
पनपते हैं
टूटते हैं
बिखरते हैं
जीती हैं ये दीवारें
बेजान होकर भी
सुनती हैं हर एहसास को
सुनती हैं हर आहट को
सुनती हैं हर आस को
सुनती हैं हर व्यथा को
सुनती हैं हर दर्द को
जीती हैं ये दीवारें भी
क्योंकि इसी में तो
बसी होती है एक पूरी
दुनिया
जन्म से  बचपन से यौवन से
अधेड़ से बुढापा तक की
हर खुशी
हर दुःख
की साक्षी रहती हैं ये दीवारें
जन्म से मरण
तक का पूरा जीवन
बेजान होकर भी जीतीं हैं
ये साथ साथ हर कदम
हर मौसम हर सुबह हर दिन
हर शाम हर रात।।
…मीनाक्षी सुकुमारन

मीनाक्षी सुकुमारन

नाम : श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जन्मतिथि : 18 सितंबर पता : डी 214 रेल नगर प्लाट न . 1 सेक्टर 50 नॉएडा ( यू.पी) शिक्षा : एम ए ( अंग्रेज़ी) & एम ए (हिन्दी) मेरे बारे में : मुझे कविता लिखना व् पुराने गीत ,ग़ज़ल सुनना बेहद पसंद है | विभिन्न अख़बारों में व् विशेष रूप से राष्टीय सहारा ,sunday मेल में निरंतर लेख, साक्षात्कार आदि समय समय पर प्रकशित होते रहे हैं और आकाशवाणी (युववाणी ) पर भी सक्रिय रूप से अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहे हैं | हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रहों .....”अपने - अपने सपने , “अपना – अपना आसमान “ “अपनी –अपनी धरती “ व् “ निर्झरिका “ में कवितायेँ प्रकाशित | अखण्ड भारत पत्रिका : रानी लक्ष्मीबाई विशेषांक में भी कविता प्रकाशित| कनाडा से प्रकाशित इ मेल पत्रिका में भी कवितायेँ प्रकाशित | हाल ही में भाषा सहोदरी द्वारा "साँझा काव्य संग्रह" में भी कवितायेँ प्रकाशित |