लघुकथा

अव्वलखैर

आज देश-दुनिया के सभी लोग कोरोना से बचाव की कोशिश में लगे हुए हैं. इसलिए ब्लॉग के कामेंट्स में भी सबको जागरुक करने के लिए बार-बार लिखा जा रहा है- ”कोशिश करने वालों की हार नहीं होती.”

अब तो मोबाइल पर इस कथन को लिखने के लिए कोशिश शब्द लिखते ही बाकी के सभी शब्द खुद-ब-खुद आते जाते हैं. ‘अव्वलखैर’ शब्द लिखना शुरु करते ही हमारे मोबाइल पर यह शब्द खुद-ब-खुद आ जाता है. यह मोबाइल की ख़ासियत है, हमारी नहीं.

इसी बात पर हमें ‘अव्वलखैर’ का प्रेरक वाकया याद आ गया. एक बार फेसबुक पर गौरव भाई से चैट हो रही थी. ”गौरव भाई, बहुत दिनों से आपका कोई ब्लॉग महीं आ रहा! हम प्रतीक्षा कर रहे हैं!” हमने लिखा.

”अत्यंत व्यस्तता चल रही है, रविवार से अपना ब्लॉग पर अवश्य सक्रिय हो जाऊंगा.” गौरव भाई ने कहा.

जवाब में हमने ‘अव्वलखैर’ लिखा.

‘अव्वलखैर’ का हिंदी में शाब्दिक अर्थ क्या है दीदी?” गौरव भाई की जिज्ञासा थी.

”मुझे ऐसी ही आशा थी, अव्वल यानी सबसे पहले, ख़ैर यानी सब ठीक रहे.अव्वलखैर हमारी सिंधी भाषा का एक बहु-प्रचलित शब्द है.” हमने कहा.

”असल में पहले कभी सुना नहीं इसलिए जानने की जिज्ञासा उठी.” गौरव भाई बोले.

”भविष्य के प्रति पूर्णरूप से सकारातमक रवैया रखते हुए भी हम भविष्य के लिए कभी भी ‘अवश्य’ शब्द का प्रयोग नहीं करते. ‘अव्वलखैर’ शब्द का प्रयोग करते हैं.”

”जी दीदी, उर्दू में तो अव्वल और खैर दोनों का मतलब पता था लेकिन दोनों शब्द एक साथ पढ़कर थोड़ा नया-सा लगा.” गौरव भाई ने स्पष्ट किया.

”गौरव भाई, बचपन में हमारे पूजनीय पिताजी ने हमें एक किस्सा सुनाया था. एक बार कोई जरूरतमंद धर्मराज युधिष्ठिर से अपनी कन्या के विवाह के लिए सहायता मांगने आया. धर्मराज युधिष्ठिर उस समय पूजा में मग्न थे, इसलिए भीम ने उनसे कल आने को कहा. धर्मराज युधिष्ठिर ने भीम की बुलंद आवाज सुन ली और उस जरूरतमंद की सहायता को पूजा समझकर उसकी सहायता की. फिर भीम की ओर मुखातिब होते हुए बोले- ”तुम्हें कैसे पता कि मैं कल उसकी सहायता अवश्य कर पाऊंगा या नहीं! इस क्षणभंगुर शरीर का क्या भरोसा! कल रहे-न-रहे. आशावादी रहकर भविष्य की योजना बनाना सही है, लेकिन ‘अवश्य’ शब्द का प्रयोग सर्वदा अनुचित है. शुभस्य शीघ्रम. शुभ काम में देरी नहीं करनी चाहिए.” धर्मराज युधिष्ठिर ने तुरंत उस जरूरतमंद को बुलाकर अपने धर्म का पालन किया.

यह किस्सा सुनाते हुए पूजनीय पिताजी ने कहा था-‘अवश्य’ के बजाय इसलिए ‘अव्वलखैर’ शब्द का प्रयोग करते हैं. ‘अव्वलखैर’ का अर्थ आप हरि-इच्छा भी ले सकते हैं. पूजनीय पिताजी हमेशा ‘अवश्य’ के बजाय ‘अव्वलखैर’ शब्द का ही प्रयोग करते थे.” हमारा कहना था.

”दीदी, जरूर इसमें कोई बड़ा राज होगा!” गौरव भाई की पुनः जिज्ञासा थी.

”यही तो मजे की बात है! हम ‘अवश्य’ के बजाय ‘अव्वलख़ैर’ कहने का! दोनों में कितना फ़र्क है? ‘अवश्य’ में जहां खुद करने का भाव आ जाता है, ‘अव्वलख़ैर’ में हरि की इच्छा प्रधान रहती है. अवश्य में जहां बंधन आ जाता है, अव्वलख़ैर में हम मुक्त रहते हैं. मुक्ति ही मोक्ष है.”

”जी दीदी. कुछ नया सीखने को मिला “अव्वलखैर” ??

”यही हमारा मंतव्य था!”

”जी आपका मंतव्य सफल हुआ और मेरा ज्ञानवर्धन भी हुआ. आभार सहित प्रणाम??.”

गौरव भाई की बात ”अत्यंत व्यस्तता चल रही है, रविवार से अपना ब्लॉग पर अवश्य सक्रिय हो जाऊंगा.” बात पूरी हुई कि नहीं यह तो वे ही जानें, पर उनकी जिज्ञासा, बेबाकी, विनम्रता और सुसंस्कारिता देखते ही बनती थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244