मुक्तक/दोहा

शब्द साधना

खुद को आप दुलारिये, खुद से करना प्यार ।
काम नहीं आयें सदा,  लोगों का भरमार।।
भूल भले सब जाइए, इतना रखना याद ।
एक यही जीवन मिला, बाकी सब है बाद ।।
नैनों में सपने बसें, नींद बसे तब दूर।
मन में अपने चाह की, चाह रहे भरपूर ।।
नैन चुगलियाँ कर रही, होठ भले खामोश ।।
काबू रख मन तू सदा ,बेहोशी में होश ।।
चुप है दोनों जान के, अगर पड़े जो बोल ।
जाने कितने राज हैं, खुल जायेंगे पोल ।।
— साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)