रफ्तार
ये समय क्यों इतना तेज भागता है,
जिंदगी की आपा धापी में,
काश मैं इसको पकड़ पाती,
जो खुशी के पल थे,
उन्हें लॉकर में जमा करती !!
अपने व्यस्त क्षणों से पल निकालकर
उन खुशियों को फिर से जीती,
हंसती, खेलती, घूमती पर
ऐसा नही होता और
मुट्ठी से रेत की तरह
समय फिसलता ही जाता है !!
बच्चे वयस्क भूमिका में आ गए
हम उम्रदराज हो गए
पर दिल कहाँ मानता है
वो तो उम्र को एक संख्या ही समझता है
हमेशा योग ही क्यों करे
गुणा ही क्यों,, भाग भी करे !!
जब घोड़े बेचकर सोना चाहते थे,
समय दौड़ाता था, व्यस्तता थी
आज हर पल अपना है पर
कब रातों की नींद उड़ गई पता ही नही चला !!
इतराते थे काले काले बालो पर
कब सफेद होने लगे, देख ही नही पाए
जब बच्चो को हमारा वक़्त चाहिए था
हम व्यस्त थे,
आज हमें बच्चो का वक़्त चाहिए
वो व्यस्त हैं !!
जिन भाई बहनों और परिवार पर गुमान था,
वजह पता नही क्या थी
पर साथ छूट गया, सब अपने में व्यस्त हो गए,
और परिवार हम दो पर ही सिमट गया !!
— भगवती सक्सेना गौड़