नवसंवत्सर हिंदुओं का सबसे बड़ा पर्व
हमारे भारत मे हिंदुओ का सबसे बड़ा पर्व है “हिन्दू नववर्ष”।जिसको विक्रम संवत या नव-संवत्सर के नाम से जाना जाता है।इसकी शुरुवात अखंड भारत के महान प्रतापी और धर्म के रक्षक राजा
विक्रमादित्य जी ने किया था।और इसीलिए इसका नाम पड़ा “विक्रम-संवत”।और इस संवत्सर को प्रति वर्ष चैत्र प्रतिप्रदा को मनाया जाता है।जिसको हिन्दू नव वर्ष के रूप में जाना जाता है।इस वर्ष हम विक्रम संवत 2079 के रूप में मना रहे हैं।
नव संवत्सर को अलग अलग प्रांत में अलग अलग पर्वो से जाना जाता है।जैसे गुड़ी पड़वा,उगाड़ी, युगादि आदि नाम से जाना जाता है।चैत्र शुक्ल प्रतिप्रदा को ही इस सृष्टि का आरंभ दिवस माना जाता है।इसलिए इस दिन का विशेष महत्व होता है।अतः इस दिवस को हिन्दू नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है।इसी दिन को संवत्सर,वसन्त ऋतु प्रारम्भदि वस भी माना जाता है।
चैत्र शुक्ल प्रतिप्रदा मनाने के और भी कई कारण है जिनमे एक कारण प्राकृतिक या नैसर्गिक कारण भी है।इस सम्बंध में भगवान श्री कृष्ण अपनी विभूतियों के संदर्भ में उल्लेख करते हुए श्रीमद्भागवत गीता में कहा हैं-
“बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् । मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ।।”
अर्थात सामों में बृहत्साम,छंदों में गायत्री छंद,मासों में मार्गशीर्ष,ऋतुओं में वसन्त,मैं ही हूँ।”
अतः यह कहा जा सकता है कि भगवान श्री कृष्ण जी विभुतिस्वरूपाय वसन्त ऋतु का आरम्भ दिवस भी माना जाता है।
इसके अलावा इसे मनाने का ऐतिहासिक कारण भी है।
जिसमे हमे यह पता चलता है कि हमारे हिन्दू राजाओं के द्वारा विदेशी शासकों जैसे शक,हूणों को पराजित किया गया था।हमारे हिन्दू राजा शालिवाहन के कारण इस दिवस को शालिवाहन पंचांग भी शुरू की गई।
नववर्ष मनाने का पौराणिक कारण भी है।जिसमे भगवान श्री राम ने इसी दिन बाली का भी वध किया था।
और इसी चैत्र शुक्ला प्रतिप्रदा के दिन अयोध्या में श्री राम जी का विजयोत्सव पर्व मनाया जाता
है।इसी के प्रतीक स्वरूप धर्मध्वज फहराया जाता है।महाराष्ट्र में इसी को “गुड़ी-पड़वा” कहा जाता है।इस प्रकार से यह कहा जा सकता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिप्रदा हम हिंदुओं के लिए विशेष महत्व रखता है जो हमारे लिए,हमारी सँस्कृति का एक प्रमुख हिस्सा है।जिसको हम संजो के रखना हमारा धर्म होना चाहिए।
— अशोक पटेल “आशु”