मुसाफिरखाना
फकीर की तरह आया है
फकीर की तरह चला जायेगा
ये जग किसी का नहीं है घर
तुँ कैसे ठहर पायेगा
साम्राज्य नहीं है तेरी कायनात
शुन्य में है तेरी भी औकात
जग है सिर्फ एक मुसाफिरखाना
सबका है जग में आना जाना
ना सम्राठ अशोक रहा है
ना विश्व विजेता सिकन्दर का हुआ है
ना चन्द्रगुप्त ना चाणक्या का चला है
जो आया था रूखसत पाया है
किस बात पर करता है अभिमान
जीना है यहाँ पाना है सम्मान है
जग है कुछ दिनों का बसेरा
लौट जायेगा जब होगा सबेरा
अच्छे कर्म की होगी सदा गुणगाण्
संभल संभल कर चल ओ इन्सान
नेकी के पथ पर है सदा चलना
जीवन में है तुम्हें आगे बढ़ना
ईष्या द्वेष से पाना है निजात
मानवता है जग में एक जात
इन्सान है प्रकूति में महान
मत कर जग में इसे बदनाम
— उदय किशोर साह