कविता – माँ का श्रंगार
नव रुपों में सजती है माँ
करके सोलह श्रंगार
आँखों मे है अंजन
सोहे माथे पर बिंदी
ललाट पर है सिंदूर
बालों में मोगरे का गजरा
जिसे देख हुआ मन प्रफुल्लित
गले में सोने का हार
लाली साजे उनके अधर पर
कान में सोहे कर्ण फ़ूल
लाल लाल चूड़ी हाथों में
हाथ की उंगली में मुंदरी साजे
महेंदी लगे दोनों हाथों में
जिसे देखकर मन होय विभोर
कमरबंद है उनकी कमर में
महावर लगे पैरों में बिछिया पायल
लाल चुनरी ओढे माता रानी
रूप ही निखरा जाए
— पूनम गुप्ता