कविता

खालीपन

बड़ी बरकत है
खालीपन में भी,
लाख कोशिशों से
नहीं भरता खुशनुमा
लम्हों की यादें.
झूठे, खोखले वादे
सुराख़ कर जाते हैं..
दिल की दीवारों में।
सुकून रिस जाता है,
जागती मायूस आँखों से।
मुस्कान बह जाती है,
उलझे से सवालों
के सैलाब में।
और भीतर रह जाता है
वही खालीपन।
इसे चैन की बूंदो से नहीं,
उम्मीद की रोशनी से भरते हैं।
चलो, एक खालीपन से ही,
खालीपन दूर करते हैं।

— दीप्ति खुराना

दीप्ति खुराना

वरिष्ठ कवयित्री व शिक्षिका, स्वतंत्र लेखिका व स्तम्भकार,मुरादाबाद'- उत्तर प्रदेश