कविता

हसरत

हसरत से भरी ऑखें तेरी
मूक आमंत्रण दे जाता है
मन प्रेमी पागल मधुकर बन
तेरे ईद गिर्द ही मड़राता है
इसे प्यार का नाम दूँ अथवा
ये मेरा पागलपन की लक्षण है
कोई वैद्य नहीं है आस पास
जो दिल को मरहम दे जाये
क्या नींद ना आना चैन ना आना
इश्क की बीमारी का दरवाजा है
गर ऐसा ही है मर्ज अपना
परवाह यहाँ पर किसका है
अय रब तुँने ये रोग दिया
मन को क्यूँ ऐसा वियोग दिया
देना ही है तो दवा दे दे
मेहरबानी से मिलन दे दे
जब बदरा नभ पे छा जाता है
मन मयुर वन में मुस्कुराता है
तब बारिस की आशा में मन
मदमस्त मन डूब जाता है

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088