कविता
क्या करते तमन्ना कोई
वक्त से वक्त न मिलाया कर कभी ||
जाने गैर था या अपना ..
लिए इम्तेहान हर पल ही ||
किनारे लहरों को खोजते रहे
डूबकर मझधार कब उतरे सभी ||
मीठा वक्त तो सुहाता है
कडवे का स्वाद लिया चख कभी ||
आजमाइश क्या करनी रूह की
जिन्दगी को भी रमाया कर कभी ||
महकते लम्हे बुरे लगते कब हैं
गम को भी महकाया कर कभी ||
— विजयलक्ष्मी