कविता
खुशियाँ बेशक बाँटी जाती हों – दिलों को लुभाने के लिये
गम इन में शामल हो ही जाते हैं आप की पलकों को भिगोने के लिये
फूल भी तो भखेरे जाते हैं कदमों को चूमने के लिये
काँटे इन में मिल ही जाते हैं नाज़ुक पाओं में चुबने के लिये
रुत बहारों की ही मिले उमर भर यिह भी ज़रूरी तो नही है
मौसम पत झढ का भी बना है इसी ज़िनदगी के लिये