वृद्ध झेल रहे परिजनों का तिरस्कार एवं मानसिक रोगियों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण हेय
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आधुनिक जीवन शैली,भागदौड़ भरी जिंदगी,रातों रात शिखर पर पहुँचने की आंकाक्षा और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण पुरे विश्व में 45 करोड़ लोग मानसिक बिमारियों जैसे तनाव, मानसिक अवसाद और असुरक्षा की भावना(फोबिया ) से ग्रस्त है |मानसिक रोगियों के संख्या बढ़ती दिखाई देने लगी है |मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के चिंताजनक पहलू के हिसाब से इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाए जाने की आवश्यकत है | राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को गति देने की आवश्यकता है|इसके तेज होने मानसिक रोगियों के स्वास्थ्य के लिए हितकारी कदम साबित होगा |ग्रामीण व् आदिवासी अंचलों में मानसिक रोगियों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण हेय ही है |इस सोच में बदलाव लाने का प्रयास कई स्थानों पर होता रहा है |सामाजिक उपेक्षा व उलाहनों के कारण हर शहर,हर गाँव में विक्षिप्त ,मानसिक रोग से पीड़ित घूमते देखे जा सकते है |परिवारजनों को पीडित के साथ कम्युनिकेशन बनाये रखना व उसे समझना चाहिए क्योकि परिवार से उसे मानसिक संबल मिलता है | इसके अलावा बेसहारा,बेहाल भटकते हुए मानसिक पीड़ित रोगी को एक समस्या मानकर मानसिक अस्पताल पहुँचाने का कार्य करने के लिए उत्सुक व्यक्तियों तथा स्वेच्छिक संस्थाओं और शासन को आगे आना होगा।पीड़ित रोगियों के लिए मानसिक चिकित्सा कक्ष का भी पृथक से निर्माण किया जाना चाहिए ,जिससे आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग के लोग अपने परिवार में
या जान-पहचान में से पीड़ित व्यक्ति को नजदीकी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करा सकें |दूसरी और देखे तो वर्तमान में कई वृद्ध झेल रहे परिजनों का तिरस्कार।जिसकी मुख्य वजह जैसे आधुनिकीकरण ,कामकाजी लोगो का स्थानांतरण व् युवाओ का शहरों की ओर पलायन आदि से बुजुर्गो की अनदेखी हो रही है।साथ ही अपने बड़ो के प्रति आदर सम्मान छूटता जा रहा है।वृद्ध माता -पिता स्वास्थ्य ठीक न होने से देखभाल हेतु उम्मीद करते है यदि उनके प्रति अनदेखी करेंगे तो हमारे बच्चे भी उसी तरह अनुसरण करेंगे।ऐसे में माता पिता के मन में आ रहे युवाओं में इस तरह के बदलाव से भविष्य में उनके प्रति चिंतनीय प्रश्न उठने लगे है।युवाओं को चाहिए कि माता पिता के लिए इलेक्ट्रॉनिक युग की भाग- दौड़ भरी दुनिया में से माता -पिता के लिए भी कुछ समय निकाले।परिजनों को चाहिए कि वे वृद्ध लोगों की अनदेखी न करें साथ ही उन का तिरस्कार न करें ।बल्कि उनका सम्मान करें क्योकि उन्होंने ही परिवार शब्द एवं आशीर्वाद की उत्पत्ति की है ।
— संजय वर्मा ‘दॄष्टि ‘