लघुकथा

लघुकथा – नेता जी कहां हैं

शमीम साहब हैरान-परेशान है,सप्ताह दिन से नेता जी को खोजते फिर रहे है,पर नेता जी है कि अपना टेबल कुर्सी छोड़ न जाने कहां गायब हो गए हैं । नेता जी से शमीम साहब का भेंट हो भी तो कैसे हो! किसी से पुछे तब न कोई कुछ बताये उन्हें। वो तो मन ही मन राधा रानी बन कृष्ण को खोजते फिर रहे थे जैसे!
ओभरसियर से नये नये सिविल इंजीनियर बने थे सो सुबह-शाम ठेकेदारों से मेल जोल बढ़ाना भी जरूरी था लेकिन जिनकी कृपा से तारापुर कोलियरी में उनकी एज ए इंजीनियर पोस्टीन्ग हुई थी उनसे अभी तक मुलाकात न होना अब उसे अखरने लगा था ।
और फिर नेता जी तो कोई खधरधारी नेता थे नहीं,जो दूर से ही खदबदाते हुए नजर आ जाते,उनकी साफ छवि और सादगी भरा जीवन किसी भी छुट भैये नेताओं पर भारी ही पड़ता रहा है और ऐसे लोग भीड़ में नहीं -एकला चलो की राही होते है । अच्छे काम और अच्छे परिणाम पसंद लोगों के बीच ही ऐसों का बसेरा होता है ।
नेता जी भी एकदम से किसी कोने से नेता नहीं लगते ! साधारण कपड़े, पेंट-शर्ट, साधारण पहनावे में वह बिल्कुल अलग ही लगते थे -फिल्मों के आलोक नाथ जैसे ।
देह-दशा में भी नेता नहीं लगते ।बारह साल आफिस में काम करके भी पसली में पाव भर मांस नहीं चढ़ा तो और क्या ढुंढिएगाश, नेता का एक भी लक्षण ढुंढने से नजर नहीं आता। पूरा वेष भूषा एक दम गंवई ! एक दम मजदूर से भी गए गुजरे हैं हमारे नेता बाटुल दा ।
अरे नेता माने नेता-देह से, कपड़े से, चलने-फिरने, उठने-बैठने, में झलक आनी चाहिए जिनमें ये सारी खुबियां हो वो आज का नेता !
जिनमें अक्कड न हो वो किसी एंगल से नेता नहीं माना जा सकता है । उसकी हर बात में नेता गिरी की झलक आनी चाहिए । पर हमारे बाटुल दा ने ई सब सीखा ही नहीं ! सुना है आज तक कंपनी क्वाटर भी नहीं लिया है । दूसरा होता तो दो चार क्वाटरों में अलग से कब्जा कर दबंग नेता का खिताब पा चुका होता । लेकिन यह तो अपना एंटीना सीधे गांव से जोड़ रखा है । आज भी अपनी फटफटी से घर से आना जाना करते हैं। इसका वो दो फायदे कायदे से बताते हैं-” गांव के लोगों से जुड़ाव बना रहता है और दूसरा परिवार के साथ जीवन गुजारना परम सुख की प्राप्ति होती है जो शहर या क्र्वाटर में रहकर आप कभी नहीं पा सकते हैं ।”
लो कर लो बात,आज भला परम सुख के पीछे कोई भागता है भला, सभी को बाप बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा रुपैया ” पसंद है और हमारे बाटुल दा परम सुख के पीछे पड़े थे ।
लगता है न अद्भुत विचार का धनी !
किसान परिवार से मर खपकर कोलियरी तक पहुंचे हैं!
नेता गिरी कहां से सीखते बाटुल दा ! वरना इतना अच्छा काम करते हैं मजदूरों का -इनको तो अभी तक मजदूरों का बड़ा नेता हो जाना चाहिए था । खादी -वादी पहन कर रहना चाहिए, पर ये तो मजदूरों को सुधारने की बात करते चलते हैं “शराब मत पियो,जुआ मत खेलो, इससे कई पीढ़ियां अपंग हो जाती है…।”
अरे नेता माने नेता होता है, खादी-वादी पहनो, मजदूरों के बीच दस में नौ झूठ बोलो । लोगों के बीच बड़ी बड़ी डीन्गे हांको, फलना-ढकना को ढंक कर रखो और चिलना को चलान करवा दो और ऊपर से एक आध बात फोड़ दो-” कौन अफसर मेरा कहा नहीं मानेगा,ऐसी जगह ले जाकर पटकुंगा कि जहां दारू भी नहीं मिलेगा आदि आदि….!
तो बाटुल दा ने बड़ा निराश किया शमीम साहब को, वो खधडधारी नेता जी को खोजते फिर रहे थे और मिला बाटुल दा के रूप में मामूली किरानी !
” गजब का चकमा दिये आपने बाटुल दा,हम तो समझे थे, नेता जी मतलब कोई बड़ा नेता होगें ”
” चौथी बार हम मिल रहे हैं ….!” बाटुल दा ने जवाब में कहा था !!

— श्यामल बिहारी महतो

*श्यामल बिहारी महतो

जन्म: पन्द्रह फरवरी उन्नीस सौ उन्हतर मुंगो ग्राम में बोकारो जिला झारखंड में शिक्षा:स्नातक प्रकाशन: बहेलियों के बीच कहानी संग्रह भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित तथा अन्य दो कहानी संग्रह बिजनेस और लतखोर प्रकाशित और कोयला का फूल उपन्यास प्रकाशित पांचवीं प्रेस में संप्रति: तारमी कोलियरी सीसीएल में कार्मिक विभाग में वरीय लिपिक स्पेशल ग्रेड पद पर कार्यरत और मजदूर यूनियन में सक्रिय