दोहा गीतिका – वासंतिक नवरात्र
वासंतिक नवरात्र का, ‘शुभम’ सुहृद उपहार।
दुर्गा माँ को पूजता, हर हिंदू परिवार।।
जगदंबा नव रूप में, करतीं जन – कल्याण,
करे हृदय से साधना,नौ दिन यह संसार।
माँ देतीं वैराग्य, तप, बुद्धि , ज्ञान – भंडार,
संयम की नव चेतना, निज पावन आचार।
माँ दुष्टों का नाश कर,करतीं अभय प्रदान,
रहें न अघ के ओघ भी,देतीं अपना प्यार।
आयु,मान,आरोग्य निधि, माता के वरदान,
कहीं भुजाएँ आठ दस,कहीं भुजाएँ चार।
सिंहवाहिनी दे रहीं, चार -चार पुरुषार्थ,
देवी दानव घातिनी, शुभदात्री प्रति वार।
कर माँ की आराधना,विनसे भूत, पिशाच,
ऊर्जा मिले सकार की,रहे न शेष नकार।
माता गौरी के लिए, है न असंभव काज,
सब कुछ वे संभव करें, मिटते हृदय विकार।
अष्ट सिद्धि माँ ही करें,निज साधक को दान,
‘शुभम’साधना कर रहा,खुले नवम सिर द्वार।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’