नारी
मैं नारी हूँ
सबके ऊपर मैं सब कुछ लुटाती
घर के सारे काम निबटाती
सबका मान सम्मान का ध्यान रखती
अंदर से जब दर्द औऱ पीड़ा होती
मेरे भी छलकते नयन
क्या मैं कभी सम्मान पाऊँगी
जिसकी मैं हकदार हूँ
कितनी बार मैं अग्नि परीक्षा दूँ
जिसका दर्द कोई न समझे
क्या अपना वजूद बना पाऊँगी
सोचती कभी तो मैं इज्जत पाऊँगी
जब किसी के कटु शब्द चुभते है
अपने आप ही छलकते नयन
अंदर से भी बिखर सी जाती हूँ
मैं नारी हूँ
— पूनम गुप्ता