‘पेंटिंग अकेली है’ कहानी संग्रह पर एक सूक्ष्म दृष्टि
हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध कथाकार सामाजिक, आर्थिक और मानवीय अधिकारों के लिए संघर्षरत होकर विविध समुदायों को उनको अधिकारों को दिलाने में सहायक लेखिका चित्रा मुद्गल जी की कहानी संग्रह है– ‘पेंटिग अकेली हैं ‘ इसकी कथा भूमि महिलाओं, श्रमिकों, दलितों और आदि वासी , वंचित समाज वा उपेक्षित बुजुर्गों के संघर्षरत जीवन , द्वंद्व और अस्मिता का चित्रण है । जिसमें ‘पेंटिंग अकेली हैं ‘ कहानी के आरम्भ में गुलाबों का पौधा प्रेम सेतु का बिंब बनाकर पाठक के मन में उत्सुकता जागता है जिसमें वर्तमान पीढ़ी का प्रेम सेतु द्वंद्व , पति–पत्नी का तलाक , पुरुष विमर्श को जन्म देती हुई प्रेम के मानवीयकरण अन्तर्द्वन्द में एक रेखा खींच देती हैं । गौरतलब है कि पेंटिंग सदा अकेली ही होती है किन्तु उनके भीतर छिपे मनोभावों को व्यक्त करना सहज नहीं होता ।
आगे ‘ ठेकेदार ‘ कहानी में अति यथार्थवादिता परिलक्षित होती हैं जिसमें बढ़ती बेरोजगारी और नवयुवकों का द्वंद्व और जमींदारों के वंशज को मजदूरी करने के लिए विवश करती हैं जिसमें यह कहानी परदा नसीर जीवन से परदा उठाने का कार्य करती हैं जहां कहानी के अंत में बिरझा भकभकाकर फुटकर रो पड़ता है कहता है–” एक ही देश में दो लोक के प्राणी रहते हैं का अम्मा$$$ “। यह कहना गलत नहीं होगा कि बदलते दौर में एक देश तो दूर की बात है एक ही घर में दो लोक के प्राणी देखने को मिले तो आश्चर्य की बात नहीं होगी । और ‘आंगन की चिडिय़ा ‘ कहानी में माता– पिता के सपनों को उनकी सोच और इच्छा को बच्चे किस तरह अनदेखा करते हुए अपनी जरूरत और महत्वाांक्षा को दौड़ती – भागती जिंदगी में समेटते हुए ,अपने रिश्ते को उजागर करते है ( लिव इन रिलेशनशिप) तब किस तरह माता–पिता मौन सहमति को देने के बाध्य होते हैं इसका चित्रण बहुत ही सहज रूप में किया गया है । आगे ‘ हथियार ‘ कहानी में लेखिका स्त्री– पुरुष के सम्बन्ध विच्छेद हो जाने पर ,चरित्रहीन होने पर,एक दूसरे के प्रति दबी कुंठित भावनाओ को अभिव्यक्त करते हुए बच्चे मनोविज्ञान को स्पष्ट करने का प्रयास किया है जिसमें बिटिया बड़ी होते – होते अंत में यह सोचने को विवश हैं कि मेरा घर कहा है ? अस्मिता और अस्तित्व की कसौटी पर पग भर भूमि के लिए अपने ही पिता के घर को अपने लिए किराए पर लेती हैं , पिता का प्रेम और स्वयं का घर की तलाश पूरी करते– करते स्त्री अस्तित्व को कटघरे में ला खड़ा करती हैं । यकीनन ऐसे ही मानवीय संवेदना के द्वंद्व से जूझ रहे परिवारों के लिए ही वर्तमान युग अथॆवादी युग के रूप में आ खड़ा हुआ है । और जंगल कहानी तो अपने आप में एक शिक्षाप्रद कहानी है जिसमें पशु– पक्षियों के जीवन को कैद करना अपने घरों में वर्तमान पीढ़ी उसे अपना गौरव समझती हैं समृद्धशाली,अर्थवान और अत्याधुनिकता की सीढ़ी पर स्वयं को खड़ा महसूस करती हैं जो कि मानवीय मूल्यों के विरूद्ध है । क्योंकि हर जीव–जंतु ,पशु– पक्षी प्रकृति निर्मित अपनी निजी प्रवृति लेकर जन्म लेते हैं यदि उनके साथ उनकी प्रवृति अनुसार वातावरण न हो तो उनका जीवन कष्ट प्रद हो ही जाता है अतः जंगल को जंगल बना रहने दे,घर को जंगल और जंगल में घर न बनाए तो प्रकृति और मानव दोनों के हित में होगा ।
आगे गिल्टी रोजेस कहानी में तो स्त्री – अस्मिता और यौवन के भूखे भेड़ियों को दिखाते हुए वर्तमान समाज के यथार्थ से परदा उठाते हुए कानून व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर प्रश्न पूछने के लिए विवश करती हैं कि आखिर क्यों –रेप करवाने वाला पिता निर्दोष है और आत्महत्या आस्मिता की सुरक्षा में करने वाली स्त्री दोषी हैं और क्यों? यकीनन यह प्रश्न तो कई शताब्दियों से चल रहा किन्तु दोषी कौन है यह ठीक ठीक बता पाना आज भी मुश्किल ही होगा । वहीं ‘ तर्पण ‘ कहानी में पिता के मानवीय द्वंद्व और संवेदना को स्पष्ट करते हुए वर्तमान पीढ़ी किस तरह से उनके साथ व्यवहार करती है ,बोझ और नैतिकता के बीच के सेतु को उजागर भी करती है जिसमें करोड़ों के मालिक हो आप या पेंशन भोगी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, बस फर्क पड़ता है तो कि आप अब कितने मूल्यवान है अर्थात् अब आप वर्तमान पीढ़ी के साथ कितने प्रैक्टिकल व्यवहार कुशल हैं अपने जमाने की रियासत दार बेशक आप हो लेकिन तरीका आपका नए ढ़ंग का ही होना चाहिए नहीं तो आप जीवित ही मृतप्राय स्वयं को पाएंगे । क्योंकि आज नौकर कप जमीन से नहीं मेज से उठाने लगा है । बुजुर्ग होना समय के साथ नियति है किन्तु समय के साथ बदलते रहना स्वभाव में होना चाहिए ऐसा अर्थवादी युग कह रहा है । इसी तरह ‘ जोंके’ कहानी में मलिन बस्तियों की बेटियों को शिक्षा ,अस्मिता, और स्वच्छता के प्रश्न को खड़ा करते हुए दिखाने का प्रयास किया है कि जिस बस्ती में एक लड़की को एक मीटर प्रति माह स्वच्छ कपड़े न नसीब होते हो वहां पर विकास कैसा ! स्वच्छता कैसी ? शिक्षा कैसे संभव हो सकती हैं ।फिर है तो लड़की यदि प्रयास कर थोड़ा बहुत आगे बढ़ भी जाय तो अस्मिता कैसे बचा पाएगी , यौवन के भूखे दरिंदों से ।
इसी तरह सन्निपात और तकिया कहानी भी पाठक के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ जाती हैं ।गौरतलब है कि लेखिका महिलाओं और बुजुर्गों के अति संवेदनशील होने के कारण उनके भीतर के द्वंद्व ,शहर के अर्थवादी युग के बदलाव,भटकाव और दिखावेपन की दोहरी जिंदगी को रेखांकित करते हुए वर्तमान टूटन,घुटन,चमत्कृत प्रभाव और उनके कारण आए हुए बदलाव को बड़े ही सहज रूप में संवेदनात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से पाठक को अपनी ओर आकर्षित करती हैं कहानी संग्रह –’पेंटिंग अकेली है ‘ ।
— रेशमा त्रिपाठी