हनुमान जन्मोत्सव या जयंती इसमें भी षड्यंत्र तो नहीं ?
रामायण महाकाव्य के एक-एक पंक्ति ज्ञान के मोती है।जीवन के कठिन से कठिन परिस्थितियों से बाहर निकालने के रास्ते है।रामायण के एक मुख्य पात्र के रूप में हनुमान जी का वर्णन आता है।शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी भगवान रुद्र के ग्यारहवें अवतार है। रामचरित मानस में भी इसका जिक्र है।जब-जब धर्म की हानि होने लगती है और लोग अधर्म पथ पर तीव्रता से गतिमान होने लगते है तब तब ईश्वर का अवतार होता है। पौराणिक कथा के अनुसार जब धरती पर अधर्म बढ़ने लगा भगवान श्री हरि विष्णु विष्णू ने धर्म की स्थापना एवं अपने प्रिय पार्षदों जय-विजय को राक्षस जन्मों से मुक्त करने के लिए श्री राम चंद्र रुप में अवतार लिया। उसी काल में भगवान शिव ने भी अपने आराध्य भगवान विष्णु की सहायता के लिए हनुमान के रूप में अवतार लिया। रामायण के अध्ययन से यह बात ज्ञात होता है कि हनुमान जी का श्रीराम जी के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका थी। ऐसा कहा जा सकता हैं कि हनुमान के बिना श्रीराम के समस्त कार्य अधूरे रह सकते थे। रावण द्वारा सीता हरण के पश्चात श्रीराम को वन में भटकते देख हनुमान जी वेश बदलकर ब्राह्मण रूप में श्रीराम व लक्ष्मण के पास गए।हनुमान जी उस समय ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव के मंत्री थे।यही पर हनुमान जी एवं श्रीराम जी का परिचय होता है। हनुमान जी सुग्रीव से राम व लक्ष्मण दोनों भाईयों का परिचय करवाते है।सुग्रीव का खोया राज्य एवं बलपूर्वक पत्नी को जिस बाली ने छीन लिया था, उसे सुग्रीव को वापस दिलाते है।हनुमानजी सीता माता की खोज में समुन्द्र पार कर लंका जाकर उनका पता लगाते है।लंकानरेश रावण को संदेश देते है जिस प्रभु श्रीराम का एक सेवक इतना बलवान हैं तो उसके स्वामी कितने बलवान होंगे।हनुमान जी लंका दहन किये। आवश्यकता पड़ने पर वे श्रीराम व लक्ष्मण को अपने कंधे पर बिठाकर उनकी सहायता किये।
प्रत्येक वर्ष हनुमानजी के अवतरण का महामहोत्सव मनाया जाता है।चूंकि चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को उन्होंने अवतार लिया था।इसलिए यह दिवस पूजन, जाप इत्यादि शुभ कार्यों के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।भक्त इसे धूमधाम से मनाते है।
इस दिवस को कुछ लोग हनुमान जयंती तो कुछ लोग हनुमान जन्मोत्सव कहते है।हालांकि बीते कुछ वर्षों से यह सोशल मीडिया पर एक विवाद का विषय बना हुआ है।यह बात स्पष्ट होनी चाहिए कि वास्तविकता क्या है? क्या कहना उचित होगा और क्या अनुचित?
लेकिन इससे पहले यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि इस प्रकार के विवाद सनातन धर्मावलंबियों के विरुद्ध ही क्यों पनपते है।कई वर्षों से इस पावन व सर्व प्राचीनतम धर्म को लेकर कुछ तुच्छ बुद्धि के शाशनकारियों ने हमेशा ठेस पहुँचाने का कार्य किया।इसे मिटाने के लिए इस मत के समर्थकों को प्रताड़ित भी किया गया है।कई मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ा गया।मंदिरों को लूटा गया।वेद व शास्त्रों को तहस-नहस किया गया।उदाहरण के रूप में गुजरात के कठियावाड़ में स्थित सोमनाथ मंदिर पर कई बार आक्रमण किया गया, तोड़ा गया और उसे लुटा गया।कश्मीर के अनंतनाग में स्थित मार्तण्ड सूर्य मंदिर को तोड़ा गया।द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ा गया। पिछले वर्ष 13 अगस्त 2021 को यहां भव्य कोरिडोर का निर्माण कर इसका अनावरण किया गया। उत्तरप्रदेश के मथुरा में स्थित श्री कृष्ण जन्मभूमि के भव्यता को उजाड़ा गया।उत्तरप्रदेश के ही अयोध्या में स्थित श्रीराम जन्मभूमि के साथ भी बाबर द्वारा शासन कर इसे तोड़ा गया और वहां मस्जिद बनवा दिया गया।कई वर्षों से इस मामले को लेकर कोर्ट में केस चलते रहा।निर्णय के बाद 5 अगस्त, 2020 प्रधानमंत्री मोदी द्वारा यहाँ भव्य मंदिर निर्माण की नींव रखी गयीं।
इसके साथ ही न जाने कितने मंदिरों एवं हमारे आस्था के साथ खिलवाड़ किया गया।हिन्दुओं का जबरन धर्मांतरण कराया गया।अनेक प्रताड़ना दी गयी।जो धर्मान्तरण स्वीकार नहीं किया, उसे मौत के मुँह में ढकेल दिया गया।यह सब मैं अपने मन से नहीं बल्कि अपने इतिहास के पन्नों से बताने का प्रयास कर रहा हूँ।काशी विश्वनाथ के ध्वस्त करने का जो जिक्र मैंने किया है उसके ध्वस्त करने का आदेश आज भी एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में सुरक्षित है।
अंग्रेजों ने भी भारत के धर्म, संस्कृति व सभ्यता के साथ खिलवाड़ करने में कोई कसर नहीं छोड़ा। डॉ के.वी पालीवाल की पुस्तक- ‘मैक्समूलर द्वारा वेदों का विकृतीकरण-क्या क्यों और कैसे’ में स्पष्ट प्रतित होता है कि अंग्रेज किस प्रकार का नजरिया रखते थे।मैक्समूलर ने 1857 की विजय को याद कर दिसंबर 1868 को तत्कालीन प्रधानमंत्री ड्यूक ऑफ आरगाइल को पत्र लिखता है और वह अपनी इच्छा और इरादा ड्यूक को बताता है।वह लिखता है कि भारत को एक बार जीता जा चुका है। लेकिन भारत को इस बार दुबारा जीता जाना चाहिए और यह दूसरी जीत इसाई धर्म की शिक्षा के द्वारा होनी चाहिए।
इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि हिन्दुओं को ईसाईयत की शिक्षा देकर ईसाई बनाया जाय।उनका धर्मांतरण कराया जाय। उसका मकसद यही रहा कि अगर हम अपनी शिक्षा और धर्म यहाँ थोप देते है ,लोगों को ईसाई बना देते है तो लम्बे समय तक यहाँ राज करेंगे।अंग्रेजों ने हिन्दुओं के कई धर्म ग्रंथ नष्ट किये।भारत के लोगों में ईसाइयत का नींव डाला। गलत प्रचार कर हिन्दुओं को उन्हें अपने ही धर्म के खिलाफ भड़काया गया। वास्तविकता को अंधविश्वास कहकर अंग्रेजों द्वारा खूब लुटा गया।हिंदुओं के एकता व अखण्डता का संदेश देने वाले कई पर्व व त्याहारों का रूप परिवर्तित करने का प्रयास किया गया।हालांकि समस्त उनके अवरोध वाले प्रायास के बावजूद भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ।परन्तु आज भी पाश्चात्य सभ्यताओं का छाप भारत पर हावी होते रहा है।हिन्दुओं को खुद में लड़ाने का प्रयास हावी रहा है।हमसभी को इसे समझने के लिए व वास्तविकता जानने के लिए एक बार अपने इतिहास के पन्नों को पलटना होगा।समझना होगा कि हमारे पूर्वज कितने यातनाओं को झेलकर हमसभी को यहां तक पहुचाये है।हमें अपने कर्तव्यों को समझना होगा।
इसी प्रकार के प्रभाव जन्मोत्सव और जयन्ती पर पड़ा है।सर्वविदित है कि श्री हनुमान चिरंजीवी है। वे कलयुग में साक्षात देवता है। रामायण के प्रसंग के अनुसार श्रीरामचन्द्र जी ने उन्हें यह वरदान दिया कि जब तक श्रीराम कथा प्रचलित रहेगी, तब तक श्रीहनुमान की कीर्ति व्याप्त रहेगी।इसे कोई मिटा नहीं सकता।हनुमान जी के शरीर में प्राण भी सदैव रहेंगे।जब तक ये लोक बने रहेंगे, तब तक श्रीराम की कथाएं भी स्थिर रहेंगी।
माता सीता को जब हनुमानजी ने रामचन्द्र की मुद्रिका दी थी तब माता सीता ने हनुमानजी को अभयता व चिरंजीवी होने का वरदान दिया था। भगवान इंद्र ने हनुमानजी को इच्छामृत्यु का वरदान दिया था। हनुमानजी ने भरी सभा में अपने सीने को चीरकर जगतस्वामी श्रीराम एवं जगतजननी सीता का दर्शन कराया एवं प्रमाणित किया कि हनुमान के जीवन में स्वामी व स्वामी कार्य के शिवाय कोई दूजा नहीं है।ऐसा कार्य चिरंजीवी के अलावा किसी अन्य से कभी भी संभव नहीं है।जहाँ-जहाँ राम की कथा होती है।कीर्तन होता है वहाँ-वहाँ हनुमान किसी न किसी रुप में विद्यमान जरूर होते है।
वे सभी युगों में विद्यमान है।त्रेतायुग में श्रीराम की सहायता किये। द्वापर में भीम का घमण्ड चकनाचूर किये।महाभारत में इसका जिक्र मिलता है।महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण के कहने पर हनुमानजी ने अप्रत्यक्ष रूप से अर्जुन के रथ पर ध्वज रूप में विराजमान होकर पूरे युद्ध के दौरान अर्जुन की रक्षा कीये। हनुमान जी नहीं होते तो अर्जुन का रथ पहले ही टूट पड़ा था।अर्जुन को कर्ण कब का मार दिया होता। यह बात श्री कृष्ण ने अर्जुन को तब बतायी जब युद्ध समाप्त हो चुका था।श्रीकृष्ण के कहने पर जैसे ही हनुमान जी उस रथ से नीचे आये वह रथ चकनाचूर हो गया तब अर्जुन ने हनुमान जी का आभार व्यक्त किया।
बात अगर कलयुग का हो तो 1600 में तुलसीदास जी के समय हनुमानजी ने उन्हें साक्षात् दर्शन देकर रामायण लिखने को प्रेरित किये।तुलसीदास जी सामान्य मनुष्य थे उन्हें आखिर द्वापर का ज्ञान कैसे हो जाता ? हनुमानजी ने तुलसीदास जी को दिव्य ज्ञान प्रदान किया इसके बाद तुलसीदास जी रामायण महाकाव्य लिख पाये।कहने का तात्पर्य केवल यह है कि प्रत्येक काल में हनुमानजी के होने का प्रमाण मिला है।धर्मग्रंथों ने जब उन्हें चिरंजीवी बताया है तो फिर हम हनुमान जयंती क्यों कहते है? जयन्ती तो उनकी होती है जो इस संसार में नहीं है।परंतु श्री हनुमानजी सदैव इस संसार में अर्थात ब्रह्मांड में विद्यमान है और वह अपने भक्तों पर कभी भी जरा भी आँच तक नहीं आने देते।कही न कही इस बात पर भी सभी को विचलित करने का प्रयास किया जा रहा हो।आइए हमसभी मिलकर अपने धर्म के प्रति सजग एवं दृढ़ बने। इस बार से इस पावन दिवस को हनुमान जयंती नहीं बल्कि वास्तविक नाम हनुमान जन्मोत्सव के नाम से मनाये।
— राजीव नंदन मिश्र