न ही कुछ जोडा,न ही कुछ घटाया,ऐ जिंदगी।
जैसी भी मिली उसी तरह निभाया,ऐ जिंदगी।
रोती रही रातों में,शबनम मेरी बेबसी पे,
रूठे ख्वाबों को थपकी दे के सुलाया,ऐ जिंदगी।
कभी मिले खुशी के गीत कभी बेबसी के नग्में,
हर लम्हाँ गीतों सा,गुनगुनाया,ऐ जिंदगी।
खुद ही ओढ लिया घबरा के,गम का क़फ़न,
कतरा कतरा साँसों का कर्ज चुकाया,ऐ जिंदगी।
गरीबों के नसीब में कहाँ चाँदनी के ख्वाब,
कँटीले रास्तों पे,खुद को बहलाया,ऐ जिंदगी।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”