मुक्तक/दोहा

चेहरा

हर चेहरे के पीछे भी एक चेहरा छिपा होता है
हर मुस्कुराहट के पीछे भी तो दर्द छिपा होता है
ज़िन्दगी के नाटक में सभी का किरदार होता है
किसी को कम किसी को ज्यादा वक़्त मिलता है

वो,जिनके चेहरे पे ना कोई मुखौटा लगा होता है
वो,जिनकी आँखों में जज़्बात का समुंदर होता है
आजकल कहाँ उनका कोई अपना यहाँ होता है
भला कौन उनको अपने दिल में यूँ पनाह देता है?

हर मौसम में फितरत का एक नया रूप होता है
ये साजिशों का कहाँ कोई अब सुराग दिखता है?
हँसी हँसी में खेल जाते हैं, दिल से खेलने वाले
दिल के घाव भरने में अब कहाँ वक़्त मिलता है?

— आशीष शर्मा ‘ अमृत ‘

आशीष शर्मा 'अमृत'

जयपुर, राजस्थान