दीदार की हसरत
सुरमई रंग छा गया है फिर निगाहों में
ढलने लगी है सांस भी दिल की आहों में
फिर भी है इंतज़ार का निगाहों में बसर
दीदार की हसरत लिये आंखें हैं राहों में
रहा न वो ज़माना दिल माने न नादान
अब भी तलाशता है उल्फ़त उन्हीं बाहों में
यूं टीसता है दर्द ए दिल उठने लगा धुंआ
चिलमन है तबस्सुम की दिल की कराहों में
सहमे हुये ख़्वाबों के ये टूटे हुये टुकड़े
आए हैं बमुश्किल से तेरी पनाहों में
सुनते हैं तुम अश्कों के बड़े हो तलबग़ार
लाए हैं भरे प्याले अल्ताफ़ की छाहों में
— पुष्पा “स्वाती”