मेरे देश की तकदीर है किसान
मेरे देश की तकदीर है किसान।
भारत का भाग्य विधाता है किसान।
देश का अन्न वीर सपूत है किसान।
अपने पसीने से सोना उगाता है किसान।
भूखों को जीवन दान करता है किसान।
भूखों की झोलीयों को भरता है किसान
हरियाली का सृजन करता है किसान।
जीवों का पालन करता है किसान।
दुखियों के दर्दों को हरता है किसान।
दुनिया का धरती पुत्र होता है किसान।
दुनिया का जीवन सूत्र होता है किसान।
खुद भूखा, प्यासा रहता है किसान।
गरीब, वस्त्र विहीन होके जीता है किसान।
अभाव में पलता-जीता मरता है किसान।
कर्ज में जीवन काटता है किसान।
अपने फर्ज में सदा बंधा रहता है किसान।
दु:ख, दर्द में जीता-मरता है किसान।
अक्सर बदहाली में होता है किसान।
जीवन में कई बार टूट जाता है किसान।
दूसरों के हाथों से लूटता है किसान।
कई दिनों से भूखा सोता है किसान।
सर्दी, गर्मी और बरसात को सहता है किसान।
दुनिया वीरान है किसान के बिना।
जीवन में अकाल है किसान के बिना।
आखिर क्यों करता है अपनी आत्हमत्या किसान??
खेत छोड़ सड़कों पर क्यों उतरता है किसान??
— डॉ. कान्ति लाल यादव