कवि
कवि
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बिना डरे जो सच कह जाये वह ही कवि कहलाता |
सत्कर्मों की राह दिखाए वह ही कवि कहलाता |
शब्द – शब्द में प्रबल वेग हो मोड़ हवा का रुख दे –
धार कलम की जिसकी पैनी वह ही कवि कहलाता |
राजा रंक फ़कीर ना देखे सब ही एक बराबर-
सबके लिए सत्य जो लिखता वह ही कवि कहलाता |
सरल हृदय गम्भीर सुधारक भरा कल्पनाओं से –
जीवन का आधार सिखाए वह ही कवि कहलाता |
कलम कटारी सी चलती जब नहीं कोई बच पाए-
जो यथार्थ से करे रूबरू वह ही कवि कहलाता |
स्वप्न दिखाए स्वप्न सजाए परिमल सा महकाए –
रवि से परे पहुंच है जिसकी वह ही कवि कहलाता|
जो स्वदेश हित कलम चलाए नित नव ज्ञान कराए –
देश प्रेम की अलख जगाए वह ही कवि कहलाता |
ऐसे गीत मनोहर रच दे जग पीड़ा हर जाए –
जो जन जन में आशा भर दे वह ही कवि कहलाता|
इस समाज में कितनी पीड़ा कितने दर्द छुपे हैं-
जो रहस्य का मर्म बताए वह ही कवि कहलाता |
हैं गरीब की भूँख जलाकर सेंक रहे जो रोटी –
उन नेता कमर तोड़ दे वह ही कवि कहलाता |
संस्कार मरियादा में रह नित्य रचे नव कविता –
तूफानों का रुख जो मोड़े वह ही कवि कहलाता |
©मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’