विडम्बना
*विडंबना*
छल किया पुरुष ने नारी से यह तथ्य सभी ने पहचाना |
नारी से नारी ठगी गयी यह तथ्य नहीं क्यों पहचाना |
पुरुषों नें तो अपनी महिमा के लिए दबाया नारी को |
उनका ऊंचा स्थान रहे इस लिए गिराया नारी को |
नर ने नारी की पिछड़न को ही बस अपना विकास माना|
दहलाया अपनी वहशत से पुरुषत्व स्वयं का दिखलाया |
दासी नारी को बना स्वयं शासक बन बैठा नारी का |
सेवा करवायी जी भर के और किया कठिन जीना उसका|
पर क्या नारी के द्वारा ही नारी का कम अपमान हुआ?
रिश्तों की बलिहारी देकर खुद नारी को ही मिटा दिया |
पुरुषों से ज्यादा नारी ने नारी पीड़ा का वृत ठाना |
छल से बल से निर्ममता से बस छीन लिया मुँह का दाना |
अपमानित करने को नारी सासू का रूप धरे आयी |
ननदी का रूप लिए नारी निर्मम आँसू बनकर आयी|
पद पाकर उसने जिठनी का देवरानी को मारा ताना |
नारी का शोषण उत्पीड़न युग युग से होता रहा यहाँ |
पुरुषों के अत्याचार यहाँनारी पर सदा बरसते हैं |
पर नारी के द्वारा उसपर कब सुमन नेह के बरसे है |
जागो अपनी आँखें खोलो नर और नारी की बात नहीं |
अन्याय किसी के द्वारा हो उसपर आवाज बुलंद करो |
©®मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’