ज़िंदगी इक सवाल है अबतो (ग़ज़ल)
ज़िंदगी इक सवाल है अब तो |
इसमें गुम ही जलाल है अब तो |
कैसे इस देश का भला होगा ,
नौ जवाँ बेखयाल है अब तो ।
हर तरफ़ जुल्म की चले आँधी,
सबका जीना मुहाल है अब तो |
जिससे तालीम सीखते हम हैं,
वो इबारत निढाल है अब तो |
कोई लम्हा नहीं सुकूँ का अब –
ज़िंदगी ही बवाल है अब तो |
तोड़ती दम ‘मृदुल’ उमीदें क्यों,
दिल में ये ही मलाल है अब तो।
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’