गीतिका
तन्हाई की पीर लिखूँगा ।
इन नैनौं का नीर लिखूँगा।
जिसने दिया वियोग क्रौंच को,
वही व्याध का तीर लिखूँगा ।
घाव पीठ पर देने वालों !
तुमको कैसे वीर लिखूँगा ।
उर में हैं झंझा भावों का ,
चेहरे को गंभीर लिखूँगा ।
मैं भी हूँ उनका अनुगामी ,
तूलसी ,सूर, कबीर लिखूँगा ।
हर सीता माँ रहे सुरक्षित ,
रेख नही प्राचीर लिखूँगा ।
चलों ‘गंजरहा’ कलम उठाओ,
मैं अपनी तकदीर लिखूँगा ।
—————- © डॉ. दिवाकर ‘गंजरहा’