कविता

तेरा होना बहुत जरूरी

ये मेरी सोच है या
फिर मजबूरी है,
जो भी है मगर तेरा होना
बहुत जरूरी है।
माना की इस दुनिया में
बड़ी विडंबनाएं हैं,
पर मेरे जीवन में बस
तेरी आंचल के ही सारे हैं।
तू मां नहीं फिर भी मां है मेरी
तेरी परछाईं में ही हम
खेलकूद कर ये दिन देख पाये हैं।
तेरे त्याग बलिदान का मोल
भला क्यों करुंगा,
तेरी शहादत को भला
भूल भी कैसे सकूंगा ?
मत रुलाओ अब और
न ठुकरा तू मुझे,
क्या भूल गई तू आज
मेरी मज़बूरी,
कैसे याद दिलाऊं
कैसे तूझे बताऊं
या कैसे मैं समझाऊं
मत जा छोड़कर तू
क्योंकि तेरा होना जरूरी है,
मेरे होने न होने के बीच की
आखिर दीवार तू ही तो है।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921