संस्कार
बेटी के अचानक नौकरी छोड़ने के फैसले से माता पिता हैरान थे।
बिटिया को समझाते हुए पिता जी बोले, “बेटा, तुम दोनों प्राइवेट नौकरी वाले हो। कुछ साल और नौकरी कर लो ताकि घर बन जाए, फिर नौकरी छोड़ देना।”
“पर पापा, नौकरी के चक्कर में वैसे भी यह दूसरे शहर में और मैं आपके साथ रहती हूँ। पर अब बिटिया आठ महीने की हो गयी है। मैं और यह दोनों ही उसके बचपन को, उसके संग जीना चाहते हैं। ” नेहा बोली, “और नौकरी तो मैं बाद में भी कर सकती हूँ ।
“पर बेटा, अभी तो तुम करियर की ऊंचाइयों पर हो, इस समय अपनी नौकरी छोड़ना क्या उचित रहेगा ?” बेटी के भविष्य की चिंता करते हुए मां बोली।
“मां, इन ऊंचाइयों पर मैं आपकी वजह से ही पहुँच पाई हूँ।” मां के गले लगते हुए नेहा बोली “और…. क्यों भूलते हो, यह संस्कार तो मुझे आप दोनों ने ही दिए हैं। ”
माता पिता दोनों मुस्कुरा दिए। आखिरकार, संस्कार फिर से जीत गए थे।
अंजु गुप्ता