ग़ज़ल
मखमली यादों को मैं सजाऊँ कैसे ।
उनको अब दिल से मैं भूलाऊँ कैसे।
वक्त अब इन्तहा का हुआ है खतम
फिर से यूँ दिल में उन्हे बसाऊँ कैसे ।
छोड़ के साथ मेरा वो क्यूँ चले गये,
रिश्ता बेदर्द से अब मैं निभाऊँ कैसे।
जमाने के भी दस्तूर कुछ रहे हैं मगर ,
उनसे अब नजरें भी मैं मिलाऊँ कैसे।
मखमली यादों को मैं सजाऊँ कैसे।
उनको अब दिल से मैं भूलाऊँ कैसे।