गार्गी: एक महान दार्शनिक
जब जब वैदिक कालीन दार्शनिकों ,विद्वानों एवं तत्व वेत्ताओं का उल्लेख होता है तब तब महिला विद्वानों में ब्रह्मवादिनी कन्या गार्गी का उल्लेख सर्वोपरि होता है। गार्गी, गर्गवंशीय वचक्नु नामक ऋषि की पुत्री थी और नाम रखा गया ” वाचकन्वी गार्गी “। गार्गी का जन्म लगभग 700 ईसा पूर्व माना जाता है।
विदुषी गार्गी ने एक बार तात्विक वाद विवाद में ऋषि याज्ञवल्क्य को भी निरुत्तर कर दिया था। ऋषि याज्ञवल्क्य अपने समय के सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक माने जाते थे और आज भी। गार्गी ने न केवल वैदिक वाद विवाद में ख्याति प्राप्त की अपितु वेदों की ऋचाओं के लिखने में भी अमूल्य योगदान किया।
ऋषि याज्ञवल्क्य की दो पत्नियां थी कात्यायनी और मैत्रेयी। कात्यायनी गृहस्थ महिला थी जब कि मैत्रेयी विदुषी , तत्व वेत्ता एवं अपने पति द्वारा रचित वेदों की ऋचाओं को लिपिवद्ध करने में सहायता करती थी। अतः ऋषि याज्ञवल्क्य मैत्रेयी का बहुत अधिक आदर करते थे।
देवी के रूप में गार्गी की पूजा
चूँकि ऋषि याज्ञवल्क्य अपनी पहली पत्नी कात्यायनी की तुलना में दूसरी पत्नी मैत्रेयी का बहुत आदर करते थे इसलिए कात्यायनी ,मैत्रेयी से मन ही मन ईर्ष्या करने लगी। एक दिन ऐसा आया कि वाचकन्वी गार्गी शास्त्रार्थ के लिए ऋषि याज्ञवल्क्य के आश्रम आ पहुंची। शास्त्रार्थ में गार्गी ने ऋषि याज्ञवल्क्य को निरुत्तर कर दिया। इस घटना से कात्यायनी अति प्रसन्न हुईं और वाचकन्वी गार्गी की भूरि भूरि प्रशंसा की।
{गार्गी -याज्ञवल्क्य संवाद करते हुए }
कात्यायनी ,ऋषि कात्यायन की पुत्री थीं। कात्यायनी ने याज्ञवल्क्य को निरुत्तर करने देने वाली गार्गी की प्रशंसा का सन्देश अपने पिता कात्यायन भेजा। चूँकि बेटी का सम्मान ससुराल में कम था इसलिए याज्ञवल्क्य के पराजित होने पर कात्यायन ऋषि अति प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने कात्यायन गोत्र (वंश )के लोगों को विदुषी गार्गी का सार्वजानिक रूप में सम्मान करने को कहा. तब से आज तक कात्यायन गोत्रीय (मिश्र ) लोग विदुषी गार्गी का सम्मान करते आ रहे हैँ. कालांतर में विदुषी गार्गी के सम्मान के स्थान पर देवी के रूप में पूजा होने लगी जो आज तक हो रही है.यह पूजा वर्ष में दो बार होती है पहली पूजा चैत्र मास में बासंती नवरात्रि के बाद त्रयोदशी को और दूसरी पूजा आश्विन मास में शारदीय नवरात्रि के बाद त्रयोदशी को की जाती है.
कात्यायन गोत्रीय मिश्र, नव देवियों की ही भांति गार्गी देवी की पूजा करते हैँ. और इस अवसर पर अपने बच्चों के कर्ण भेदन, मुंडन आदि संस्कार भी आयोजित करते हैँ.
वाचकन्वी गार्गी आजन्म अविवाहित रहीं.
–अशर्फी लाल मिश्र
बहुत उपयोगी लेख.