टीस
जाने क्या हुआ था उस दिन
इस दिल के साथ
लम्हा सदियों में गुजरा था
एक पल के बाद
तुम थे उद्विग्न
मैं थी विचलित
जाने क्या हुआ उसके बाद
न तेरी थी भूल
न था मेरा कुसूर
हालात ने दिए थे नासूर
गांव थे इतने गहरे
जिससे रिसता है अब भी खून
तुम थे जितने करीब
हो गए उतने ही दूर
कुछ ठिठके थे तुम्हारे कदम
कुछ लड़खड़ाए थे मेरे पांव
हालात के आगे दोनों थे मजबूर
चाहे जितना भी दिलाए खुद को यकीं
लौट के नहीं आएंगे मेरे अतीत
मरहम घावों के होते हैं
नासूर तो बस देते है बस टीस!
— विभा कुमारी “नीरजा”