ग़ज़ल
क़ाफिया-आना
रदीफ़- कहीं
मिला नहीं जहाँ में अभी ठिकाना कहीं!
तुम हमें न यूं बार -बार आज़माना कहीं!
मेरे मुकद्दर में नहीं लिखा तेरे सिवा कोई,
ये बात फुर्सत में खुद को भी समझाना कहीं!
ये जो गैरों से मिलकर हमें देखते हो छुप कर,
आता है सब समझ हमको न बहलाना कहीं!
हमसे बिछड़ने की जो ये जल्दी है तुम्हें आजकल,
है दुआ हमसे भी बेहतर हमसफ़र पाना कहीं!
खुश तुम रहो सदा बस यही सोचते हैं हमनशीं,
भर जाए दामन खुशियों से चाहे तुम जाना कहीं!
— कामनी गुप्ता