झूला
आओ सखी झूला हम झूलें,
छोटे बड़े सभी गम भूलें !
ऊपर जाऊँ, कभी नीचे आऊँ,
आसमाँ को छू मैं जायूँ !
सखियो जरा झूला, जोर से झुलाना,
उड़ती चिड़िया से, है मिल कर आना !
पंख होते अगर मेरे भी चार,
करती मैं भी गगन विहार !
नीचे हरी धरती, ऊपर नीला आकाश,
फैला है चहुँ ओर प्रकाश !
देखो तितली है, फूलों को चूमती,
जिधर भी मन करे, उधर है घूमती !
रमा सखी झूला अभी न रोको,
उड़ने दो मुझे,अभी न टोको !
इसके बाद तुम्हारी भी आएगी बारी,
रहूंगी तुम्हारी आज्ञाकारी !
कल से फिर हमको है स्कूल में जाना,
पुस्तकों के बोझ में है फिर झुक जाना !
तो आज आओ सखी, झूला हम झूलें,
छोटे बड़े सभी गम भूलें !!
अंजु गुप्ता