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राष्ट्रकवि दिनकर की पुण्य तिथि पर आयोजित अंतस् की 33 वीं काव्य गोष्ठी

24 अप्रैल को ऑनलाइन आयोजित अंतस् की 33 वीं काव्य गोष्ठी में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को उनकी पूण्य तिथि पर स्मरण किया।
मर्त्य मानव की विजय का तूर्य हूँ मैं
उर्वशी अपने समय का सूर्य हूँ मैं
इन जैसी असंख्य अविस्मरणीय पंक्तियों के रचयिता दिनकर जी को तथा गत सप्ताह में गोलोक को सिधारीं लेखिका एवं गीतकार माया गोविंद को गोष्ठी में श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
विश्व पुस्तक दिवस तथा अन्यान्य महत्त्वपूर्ण विषयों पर विभिन्न विधाओं और रसों में काव्य रस का आस्वादन किया उपस्थित कवियों और श्रोताओं ने।
डॉ आदेश त्यागी की अध्यक्षता और पूनम माटिया के संचालन में गोष्ठी लगभग ढाई-तीन घण्टे अनवरत चली।
मुख्य अतिथि हास्य कवि हरमिन्दर पाल तथा विशिष्ट कवि डॉ कौशल सोनी फरहत रहे। डॉ दमयंती शर्मा और डॉ दिनेश शर्मा ने बतौर अतिविशिष्ट अतिथि गोष्ठी की गरिमा वृद्धि की।
दमयंती शर्मा जी ने मधुर वाणी-वंदना प्रस्तुत की।
कवि दुर्गेश अवस्थी, डी पी सिंह, कृष्ण बिहारी शर्मा, कवयित्री डॉ नीलम वर्मा, सुशीला श्रीवास्तव, महाराष्ट्र से धृति बेडेकर, छतरपुर मध्यप्रदेश से डॉ उषा अग्रवाल, साहित्य नव सृजन संस्था की संस्थापक अनुपमा पांडेय भारतीय और सुनीता अग्रवाल ने भी कविता का वाचन किया।
डॉ आदेश त्यागी ने काव्य पाठ एवं अध्यक्षीय उद्बोधन द्वारा सभी का मनोबल बढ़ाते हुये अंतस् की गतिविधियों की सराहना की। दिनकर की तर्ज़ पर उन्होंने अपना काव्य पाठ आरंभ किया अपने समर्पण मुक्तक से
युगधर्मा चिरक्रान्ति निनादित झंझा का विस्तारण हूँ
युद्धभूमि की ललकारों के शब्दों का उच्चारण हूँ
भारत माँ को प्राण समर्पित करते हैं, उन वीरों की
शौर्य कथाओं का लेखक हूँ, बलिदानों का चारण हूँ
ऊर्जित, रोचक सञ्चालन के साथ-साथ काव्य पाठ के क्रम में पूनम माटिया घनाक्षरी के साथ ग़ज़ल के कुछ शे’र पढ़े
राह में मोड़ तो आएंगे ही सनम/ सोचना है हमें किस तरफ़ हों क़दम
राहे उल्फ़त में पीना पड़े जो कभी/आबे जमजम समझना तू सारे ही ग़म
ज़लज़ला भी तो उठता है यारो वहीं/दफ़्न होते जहाँ इश्क़ो-दैरो-हरम
ग़म की लज़्ज़त और बढ़ा दे/ अश्कों को ख़ुशबू पहिना दे……डॉ कौशल सोनी “फ़रहत”
डॉ० दमयंती शर्मा ‘दीपा’ ने शारदा-स्तुति के अतिरिक्त अपने गीत से भी समां बाँध दिया-
एक कमरे में तुम, उसके कोने में हम/ये मकां कैसे घर बन सकेगा प्रिये!
आस की राह में अश्रु-सावन भला/ मन के राही को कब तक छलेगा प्रिये!
दर्द किसी का मिटे हँसी से /शब्दों का मरहम लिखता हूँ…….. अपनी संजीदा और हास्य प्रधान दोनों प्रकार की रचनाएं पढ़ते हुए हास्य कवि हरमिंदर पाल जी ने कलेवर बदला|
अपनी सद्य प्रकाशित पुस्तक प्रीत के द्वार पर से एक गीत के अतिरिक्त दुर्गेश अवस्थी ने ग़ज़ल भी पढ़ी –
क्या से क्या हो गया आजकल आदमी/ घूमता है मुखौटा बदल आदमी
आज महफ़िल में हिन्दू मुसलमां नहीं/ बैठकर सुन रहे हैं ग़ज़ल आदमी
काव्य के विविध रंगों की बानगी देखिये जो गोष्ठी में पढ़े गए …….
सबका अपना अपना रण है, सबके अलग पराजय जीत।
कौन रहा केवल दुख में ही, उत्सव का उपहार न देखा!
सबके हिस्से में कुछ खल हैं सबके हिस्से में कुछ मीत।—कृष्ण बिहारी शर्मा
रक्त चूसना धर्म, लिये हाथों में बैनर/जन्मसिद्ध अधिकार माँगने पहुँचे मच्छर… डी पी सिंह *
नूर से फिर ये घर भी तो भर जाएगा/ उसके आते ही चेहरा निखर जाएगा …. ‘नीलम’
जो कहानी कथानक को समझे नहीं/ उस कहानी को लिखने से क्या फ़ायदा….डॉ उषा अग्रवाल
स्याह होकर भी रंगीन/ कभी बेबाक, कभी संगीन….धृति बेडेकर
ये ज़िन्दगी आख़िर क्या है?/ उतरती-चढ़ती सांसें/या और भी कुछ?/शायद बहुत कुछ…..अनुपमा पाण्डेय
यूँ तो गुज़र रही हूँ उम्र के हर दौर से/ पर सही मायने में जीना बाक़ी है…..सुनीता अग्रवाल
शायरा सोनम यादव, डॉ आर के गुप्ता, श्री एस डी तिवारी, प्रज्ञा गोविल, और डॉ मीना शर्माकी काव्य-सजग उपस्थिति ने ऊर्जा वृद्धि की। संस्था में नए जुड़े सदस्यों का स्वागत कर धन्यवाद ज्ञापन संस्था के महासचिव दुर्गेश अवस्थी ने किया।अंतस् के यू ट्यूब चैनल Antas mail पर सभी कवि-कवयित्रियों को सुना जा सकता है|

डॉ. पूनम माटिया

डॉ. पूनम माटिया दिलशाद गार्डन , दिल्ली https://www.facebook.com/poonam.matia [email protected]