चारों तरफ है शोर बहुत
इधर देखो, उधर देखो ,
चारों तरफ है शोर बहुत ।
कुछ लोग फेकते हैं पत्थर ,
जो समझ रहे कमजोर बहुत ।
सेकुलर-सेकुलर चिल्लाते वो,
जो सचमुच में है चोर बहुत ।
बागों से सांप तो भागेगें,,
माली ने पाले मोर बहुत।
दुश्मन तो आतंकी होगें ही,
अपने कुछ हैं मुहजोर बहुत।
यह भ्रम है की जनता मूक है ,
पर समझ रही हर कोर बहुत।
है प्रजातंत्र भी दो राहों पर ,
इसमेंं है गठजोर बहुत ।
इधर देखो, उधर देखो ,
चारों तरफ है शोर बहुत।
— शिवनन्दन सिंह