कविता

चारों तरफ है शोर बहुत

इधर देखो, उधर देखो ,
चारों तरफ है शोर बहुत ।
कुछ लोग फेकते हैं पत्थर ,
जो समझ रहे कमजोर बहुत ।
सेकुलर-सेकुलर चिल्लाते  वो,
जो सचमुच में है चोर बहुत ।
बागों से सांप तो भागेगें,,
माली ने पाले  मोर बहुत।
दुश्मन तो आतंकी  होगें ही,
अपने  कुछ हैं  मुहजोर  बहुत।
यह भ्रम  है की  जनता मूक है ,
पर समझ रही हर कोर बहुत।
है प्रजातंत्र भी  दो  राहों पर ,
इसमेंं है  गठजोर  बहुत ।
इधर देखो,  उधर  देखो ,
चारों तरफ है शोर बहुत।
— शिवनन्दन सिंह

शिवनन्दन सिंह

साधुडेरा बिरसानगर जमशेदपुर झारख्णड। मो- 9279389968