गज़ल
यूँ तो साथी बहुत हैं लेकिन साथी सबसे प्यारा दर्द
सब अपने ही दर्द में उलझे समझे कौन हमारा दर्द
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दर्द नाखुदा, दर्द ही कश्ती, खुद ही दर्द मुसाफिर है
दर्द का दरिया, दर्द की मौजें, तूफां और किनारा दर्द
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मंहगा बहुत पड़ा हमको ये सौदा तेरी मुहब्बत का
थोड़ी सी खुशियां चाहीं थीं मिल गया कितना सारा दर्द
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पूरी दुनिया में कोई भी वफादार नहीं इस जैसा
फिर भी सबकी बातें सुनता रहता है बेचारा दर्द
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आँख खोलकर एक बार देखो तो अपने चारों ओर
होगा ये एहसास तुम्हें कि कुछ भी नहीं तुम्हारा दर्द
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कोई ना मिलता इसे ठिकाना रहता कहाँ ना जाने ये
दिल ना होता तो दुनिया में फिरता मारा-मारा दर्द
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।