जाम हाथों में लिये – यो ही बैठे हैं हम
ना जाने किन खयालों में – खोये बैठे हैं हम
कहाँ ले के आ गैई हमें – गरदिश अिस ज़माने की
अपनी ही मजबूरयों मे -बुहत तंग बैठे हैं हम
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नाज़ जिन पर बुबत था हमें- अपनी ज़िंदगी के वजूद का
उन ही की खुशियों के लिये- दूर उन से ही बैठे हैं हम
कटने को तो बुहत ही आसानी से – कट रही है ज़िंदगी
मगर यिह ही वोह ज़िंदगी है – जिस से घभराये बैठे हैं हम
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वकत अपना ही फिसलता जा रहा है- हमारे ही हाथों से
बदल गैये वोह कितने जिन के लिये – ज़माने से बदले हैं हम
लोग जाने कया कया समझते हैं — तेरे बारे में– मदन–
लेकिन खुद अपने बारे में -जाने कया समझ बैठे हैं हम