गीत/नवगीत

नदियाँ

नदियाँ बहती जगत के हित में,सबको नीर दें।
खेत सींचती,मंगल करती,सबकी पीर लें।।
सरिता अपना धर्म निभातीं,बहती ही रहें।
कोई कितना कर दे मैला,सहती ही रहें।।
हर नदिया गंगा सी पावन,इतना जान लो।
हर नदिया पूजित,मनभावन,यह तो मान लो।।
नदियाँ सबकी प्यास बुझातीं, सबकी पीर लें।
नदियाँ बहतीं जगत के हित में, सबको नीर दें।।
नदियाँ हैं भगवान की रचना, जिसमें ताप है।
कितना उपकृत करतीं हमको, कभी न माप है।।
नदियाँ युग-युग से धरती पर, जीवनदायिनी।
शुभ-मंगल के गीत सुनातीं, पुण्यप्रदायिनी।।
गंगा-यमुना सी हर नदिया,प्रमुदित भावना।
रोग,शोक,संताप हरे जो,पुलकित कामना।।
नदियाँ हरदम उपकारी है,पीड़ा चीर दें।
नदियाँ बहती जगत के हित में,सबको नीर देंhin।
— प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]