आनंदवर्धक
आनंद, आनंदमय और आनंदवर्धन किसको अच्छा नहीं लगता!
यही “आनंदवर्धन” तो वह शब्द भी है और भाव भी, जो जीवन को जीवंत बनाए रखता है. वैसे कहते तो यह हैं, कि आनंद हमारे अंतर्मन में है, बस उसको महसूस करना है. इस महसूस करने के लिए भी अंतर्मन की गांठें खोलनी होती हैं, जो सकारात्मकता से ही खुल सकती हैं. इसका अर्थ यह ही हुआ कि प्रयास से ही सकारात्मकता आ सकती है और आनंदवर्धन हो सकता है.
हम अक्सर सकारात्मक ही लिखने का प्रयास करते हैं, जो आनंदवर्धक भी होता है. आनंदवर्धक शब्द तो हमने अनेक बार सुना था, पर आनंदवर्धक छंद भी होता है आज यह भी पता लगा.
बहरहाल पेशेखिदमत है अभी हाल ही का एक आनंदवर्धक किस्सा.
हम अपने ब्लॉग में अक्सर नए-नए चुनिंदा कलाकारों को सम्मिलित करते रहते हैं, जिससे हमारे पाठकों को आनंदवर्धक जानकारी मिले, वह भी रोचकता और नवीनता के साथ.
इसी प्रयास में हमने “जितेंद्र कबीर के मुक्तक-पोस्टर्स-” शीर्षक से एक शृंखला शुरु की, जिसके अब तक 12 एपिसोड हो चुके हैं. नई तरह की यह शृंखला बहुत पसंद भी की गई.
कहते हैं न, कि संगत की रंगत लगती ही है. वैसे तो हम तकनीकी ज्ञान में एकदम शून्य हैं, पर इस शृंखला के चलते हमारे मन में भी मुक्तक-पोस्टर बनाने की बलवती इच्छा ने दस्तक दी. अब इच्छा बलवती थी, तो साधन तो मिलना ही था.
हमने जितेंद्र भाई से इस बारे में जानकारी दरियाफ्त की, जो उन्होंने बड़ी अच्छी तरह से दी, पर हम कैसे समझते!
हमारे सुपुत्र राजेंद्र तिवानी तकनीकी ज्ञान के विशेषज्ञ हैं, हमने उनके सामने अपनी यह इच्छा जाहिर की. हमारे सामने ही उन्होंने तुरंत वांछित ऐप डाउनलोड किया और बताया कि यह काम मोबाइल से ही होगा.
सीखने की इच्छा बलवती होने के कारण हमने पहले ही एक मुक्तक तैयार कर रखा था. राजेंद्र ने तुरंत पोस्टर तैयार करके दिखाया और कुछ-कुछ समझाया-सिखाया भी और मुझे अभ्यास करने के लिए कहा.
मैंने कोशिश की, पर कभी कहीं अटक जाती थी कभी कहीं. जैसे ही उस पर नजर पड़ती, मैं उसे बुलाकर अपनी अटक बताती. दूर से ही देखकर वह बड़े धैर्य से उसकी बारीकी बताता. असल में यह भी उसके ज्ञान की विशेषता थी या कि कहें “गॉड गिफ्ट”. नतीजतन हम एक ही दिन में काफी कुछ सीख गए. हमने पहला पोस्टर बनाकर उसे भेजा-
“मन
खुद ही आइना बन जाता है,
जब
तुझे सामने पाने की तड़प
आंखों में
नमूदार होती है.”
कवि तो वह है ही, तुरंत उसने लिखा-
“मन
खुश हो जाता है
जब
मम्मी की पंक्तियां
पोस्टर में साकार होती हैं।”
वैसे तो किसी भी ज्ञान की कोई सीमा नहीं है, पर कंप्यूटर के तकनीकी ज्ञान की तो कोई सीमा है ही नहीं. पोस्टर बनाने के साथ और भी बहुत कुछ सीखना अनिवार्य था, जो हम अपनी इच्छा के कारण पूछते गए और वह अपने विशेष ज्ञान और धैर्य के साथ सिखाता गया.
चैट के जरिए भी उसने बहुत कुछ सिखाया-
Good। मगर रंग बदलना होगा। ये इतना क्लीयर नहीं है।
Background हटा के देखो, नहीं तो photo छिप जाती है।
text लिखते हुए नीचे राइट साइड पर background से टिक हटाना होगा।
अभी बैटर है पर थोड़ा शब्दों का साइज़ छोटा कर के देखो
ठीक है, पर थोड़ा साइज़ और position से खेलना पड़ेगा, पर धीरे धीरे experience हो जाएगा।
थोड़ा साइज़ छोटा करोगे तो अच्छा लगेगा
Click करके नीचे राइट पर जो dot आता है उस से
बेहतर है। लेकिन रंग चेंज करना होगा
साइज़ भी थोड़ा और छोटा हो सकता है।
Try करते रहो। गुड टाइम पास
फिर जब हम लगातार पोस्टर बनाकर उसे भेजते गए, तो उसने लिखा-
एक बार जब आ जाए तो पोस्टर्स की लगेगी लड़ी.
सचमुच थोड़ा साइज़ और position से खेलते-खेलते धीरे-धीरे कुछ experience हो ही गया. यानी बेटे ने सिखाया खेल-खेल में!
पोस्टर्स पर हमारे ब्लॉग “रसलीला” पर 11-11 पोस्टर्स की एक शृंखला “हमने भी सीखा-” चल रही है, जिसके छः एपिसोड हो चुके हैं. जय विजय पर भी 5-5 पोस्टर्स की शृंखला “हमने भी सीखा-” चल रही है, जिसके 25 एपिसोड हो चुके हैं.
इस प्रकार हम पोस्टर्स बनाना भी सीख गए और आनंदवर्धन तो हुआ ही. अभी भी बहुत कुछ सीखने को है और आनंदवर्धन करना है.
आनंदवर्धन की आनंदवर्धक कहानियां हमारे-आपके पास और भी बहुत हैं, शेष आपके-हमारे द्वारा कामेंट्स में.
आनंदवर्धक छंद 19 मात्राओं का होता है-
जी रहा हूँ श्वास हर तेरे लिए
पी रहा हूँ प्यास हर तेरे लिए
‘आनंदवर्धक छंद’ की गीतिका
जो मिलेगा दाम से या प्यार से
मुफ़्त का कुछ भी नहीं बाज़ार से.
झूठ के आधार वाली जीत तो,
हर समय फीकी मिली है हार से.
जय हो आनंदवर्धक छंद की.