एशियाई चैम्पियनशिप में भारतीय पहलवानों का जलवा
पिछले दिनों मंगोलिया में आयोजित एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में भारतीय पहलवानों ने कुल 17 पदक जीते। चैंपियनशिप में अपनी-अपनी श्रेणियों में बजरंग पूनिया ने रजत पदक, गौरव बालियान ने रजत पदक, नवीन तथा सत्यव्रत कादियान ने कांस्य पदक जीते लेकिन सबसे बड़ा कारनामा किया टोक्यो ओलम्पिक में रजत पदक जीतने के बाद भारतीय पहलवान रवि कुमार दहिया ने। रवि ने एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में लगातार तीसरी बार स्वर्ण पदक जीतकर एक बार फिर साबित कर दिया कि उनके इरादों में कितना दम है। रवि ने शारीरिक क्षमता और रणनीतिक श्रेष्ठता के बूते कजाकिस्तान के रखत कालजान के खिलाफ शानदार प्रदर्शन करते हुए एशियाई चैंपियनशिप में जीत दर्ज कर स्वर्ण पदक अपने नाम किया। तकनीकी श्रेष्ठता का परिचय देते हुए रवि ने पहले पुरुषों के 57 किलोग्राम फ्रीस्टाइल में जापान के रिकुतो अराई को हराया और उसके बाद मंगोलिया के जानाबाजार जंदनबुड पर 12-5 से शानदार जीत दर्ज करते हुए फाइनल में जगह बनाई। हालांकि रवि ने अपने सभी मुकाबलों में शुरूआत में बढ़त गंवा दी थी लेकिन शानदार तरीके से वापसी करते हुए पुरुष फ्रीस्टाइल स्पर्धा में सभी प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ दिया। फाइनल मुकाबले में रखत कालजान ने उन्हें काफी समय तक कोई अंक नहीं लेने दिया था लेकिन अपनी चिर-परिचित शैली के अनुरूप रवि ने मुकाबले पर दबदबा बनाना शुरू कर दिया और लगातार 6 ‘टू-प्वाइंटर’ हासिल किए, साथ ही स्वयं को ‘लेफ्ट-लेग अटैक’ से भी बचाया, जिससे मुकाबला दूसरे पीरियड के शुरू में ही समाप्त हो गया और भारत ने 2022 की एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप के टूर्नामेंट का पहला स्वर्ण पदक रखत कालजान को 12-2 से हराते हुए अपने नाम किया।
गौरतलब है कि रवि ने इससे पहले 2020 में दिल्ली में और 2021 में अलमाटी में भी एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था और इस चैंपियनशिप में इस बार उन्होंने लगातार तीसरी बार स्वर्ण पदक भारत के नाम किया है। कोई भी भारतीय फ्री स्टाइल पहलवान अभी तक ऐसा कारनामा नहीं कर सका है और रवि लगातार तीसरी खिताबी जीत दर्ज कराने वाले पहले भारतीय पहलवान बन गए हैं। इस साल फरवरी में डान कोलोव स्पर्धा में रजत पदक जीतने के बाद रवि का इस सीजन का यह दूसरा फाइनल था। इससे पहले 5 अगस्त 2021 को टोक्यो में ‘खेलों के महाकुंभ’ में शानदार प्रदर्शन करते हुए रवि रजत पदक जीतने में सफल रहे थे। हालांकि रवि को ओलम्पिक के फाइनल में स्वर्ण पदक जीतने की उम्मीद थी लेकिन 57 किलोग्राम फ्रीस्टाइल वर्ग के फाइनल में 2018 और 2019 के विश्व चैम्पियनशिप रह चुके रूस ओलम्पिक समिति के पहलवान जावुर युगुऐव से 7-4 से हारने के बाद उनका वह सपना चकनाचूर हो गया था। अभी तक कुश्ती में कोई भी भारतीय पहलवान ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने में सफल नहीं हुआ है। हालांकि ओलम्पिक के रेसलिंग मुकाबलों में रवि का रजत पदक भी इसीलिए बहुत महत्वपूर्ण माना गया क्योंकि ओलम्पिक खेलों के इतिहास में पदक जीतने वाले वे पांचवें पहलवान बने थे और रेसलिंग में भारत का वह केवल छठा पदक था। पहलवान सुशील कुमार ने ओलम्पिक में लगातार दो बार पदक जीते थे।
भारत को सबसे पहले 1952 में हेलसिंकी ओलम्पिक में पहलवान केडी जाधव ने कांस्य पदक दिलाया था। उसके बाद रेसलिंग में पदक के लिए 56 वर्षों का लंबा इंतजार करना पड़ा था। उस लंबे सूखे को 2008 में सुशील कुमार ने बीजिंग ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतकर खत्म किया था। उसके बाद 2012 के लंदन ओलम्पिक में दो भारतीय पहलवानों ने जीत का परचम लहराया। सुशील कुमार रजत और योगेश्वर दत्त कांस्य पदक जीतने में सफल रहे। 2016 के रियो ओलम्पिक में साक्षी मलिक ने कांस्य पदक हासिल किया था। सुशील कुमार के बाद ओलम्पिक में रजत पदक जीतने वाले रवि दूसरे भारतीय पहलवान बने थे। ओलम्पिक के सेमीफाइनल मुकाबले में जब रवि ने मैच के आखिरी मिनट में कजाक पहलवान को अपनी मजबूत भुजाओं में जकड़ लिया था, तब उसने रवि की पकड़ से छूटने के लिए खेल भावना के विपरीत उनकी बांह पर दांतों से काटना शुरू कर दिया था लेकिन रवि ने अपने दबंग इरादों का परिचय देते हुए अपनी मजबूत पकड़ ढ़ीली नहीं होने दी और उसे चित्त करते हुए मुकाबला अपने नाम किया था।
12 दिसम्बर 1997 को हरियाणा के सोनीपत जिले के नाहरी गांव में जन्मे रवि कुमार दहिया ने केवल छह वर्ष की आयु में गांव के हंसराज ब्रह्मचारी अखाड़े में कुश्ती शुरू कर दी थी। दरअसल यह गांव पहलवानों का गांव माना जाता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां का लगभग हर बच्चा कुश्ती में अपने हाथ आजमाता है। कुछ समय बाद वह उत्तरी दिल्ली के उस छत्रसाल स्टेडियम में चले गए, जहां से दो ओलम्पिक पदक विजेता सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त निकले हैं। वहां 1982 के एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता रहे सतपाल सिंह ने उन्हें दस वर्ष की आयु में ही ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी थी। रवि के पिता राकेश एक भूमिहीन किसान थे, जो बंटाई की जमीन पर खेती किया करते थे। उनकी दिली तमन्ना थी कि उनका बेटा पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन करे और अपनी इसी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए उन्होंने आर्थिक संकट के बावजूद बेटे की ट्रेनिंग में कोई कमी नहीं आने दी। वह प्रतिदिन बेटे तक फल ओर दूध पहुंचाने के लिए नाहरी गांव से 40 किलोमीटर दूर छत्रसाल स्टेडियम तक जाया करते थे। 2019 की विश्व चैंपियनशिप में रवि ने कांस्य पदक जीता था लेकिन उस समय उनके पिता उनका वह यादगार मैच नहीं देख सके थे क्योंकि वे काम पर गए हुए थे।
रवि ने 2015 में 55 किलोग्राम फ्रीस्टाइल वर्ग में सल्वाडोर डी बाहिया में विश्व जूनियर कुश्ती चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता था। 2017 में लगी चोट के बाद वह करीब एक साल तक कुश्ती से दूर रहे थे और उसके बाद 2018 में बुखारेस्ट में विश्व अंडर-23 कुश्ती चैम्पियनशिप में 57 किलोग्राम वर्ग में रजत पदक जीतकर धमाकेदार वापसी करने में सफल हुए थे। उस चैम्पियनशिप में वह भारत का एकमात्र पदक था। बहरहाल, टोक्यो ओलम्पिक में रवि भले ही स्वर्ण पदक जीतने में सफल नहीं हुए लेकिन उन्होंने भारत को अपने दमदार प्रदर्शन से रजत जीतकर निराश नहीं किया था और अब एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में लगातार तीसरी बार स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने साबित कर दिया है कि उनके इरादों में कितना दम है।
–– योगेश कुमार गोयल