कहानी

पानी

गाँव के नब्बे प्रतिशत परिवार खेती-बाड़ी से जीवनयापन वर्षों से करते आ रहे हैं। बरसात में धन की खेती के साथ-ही बारह महीने सब्जियाँ उगाते हैं। बरसात में बरसाती बैंगन, भिंडी, करेला, टमाटर और अदरक आदि की खेती करते हैं। ठंड के समय फूलगोभी, पत्तागोभी, मटर, गाजर, टमाटर, बैंगन, बीन, लहसून, प्याज, आलू, धनिया, लौकी, पालक और मिर्च आदि की खेती करते हैं। गर्मी के समय अधिकतर पेचकी की खेती करते हैं। साथ-ही भिंडी, करेला, साग, लौकी, खीरा और मिर्च आदि भी।
आज से पन्द्रह-बीस वर्ष पहले सब्जी बिकने के लिए पश्चिम बंगाल के सुईसा और टोड़ांग मार्केट साइकिल से जाते थे। सुईसा मार्केट जाने के लिए रात के तीन बजे ही निकलना पड़ता। जहाँ दो नदियों को पार करना पड़ता। कांची नदी और स्वर्ण रेखा नदी। टोड़ांग मार्केट जाने के लिए स्वर्ण रेखा और राढ़ू नदी के संगम पर पार होना पड़ता। केवल बरसात को छोड़ बाकि महीने जाते। अगहन, पूस और माघ महीनों में अधिक सब्जी की उपज होती। तब सभी सुईसा और टोडांग मार्केट ही ले जाते। उस समय नदी में घुटनों से कमर तक पानी रहता। हर किसान की साइकिल में एक क्विंटल या एक क्विंटल बीस किलो सब्जी का लोड रहता। नदी को पार करने के लिए दो व्यक्ति मिलकर एक-एक की साइकिल को पार करते। पूस माह में हर दिन जाते। पूस की रात तीन-चार बजे कई कंबल से हाथ-पैर नहीं निकालता है। मेरे पिताजी, चाचा, दादाजी एवं अन्य किसान भाई घुटनों से ऊपर पानी में एक नहीं दो-दो नदी पार करके सुबह सात-साढ़े सात बजे तक सब्जी बिककर घर लौट आते। खाने का पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध भाभरा ला देते, जो खाने में बहुत आनंद आता था। मार्केट से आने के बाद पुनः सब्जियाँ बिकने सोनाहातू, बाढ़ेडीह, लान्दुकडीह और उलिलहर बाजार साइकिल से ही चले जाते। सभी बाजार सप्ताह में दो दिन करके लगता। सोनाहातू बाजार को छोड़ बाकी बाजार जाने के लिए पुनः कांची नदी पार होना पड़ता।
बरसात के समय नदी में काफी अधिक पानी रहता। इसलिए सब्जियाँ बाजार और बुण्डू मार्केट में बिका करते। बरसात में बाढ़ेडीह, लान्दुकडीह और उलिलहर बाजार जाने के लिए नाव से नदी पार होना पड़ता। लौटते समय अंधेरा होने के कारण नाविक नाव नहीं चलाते। तब सभी किसान कहीं पैदल तो कहीं तैर कर नदी पार करते। कभी-कभी अचानक नदी में बाढ़ आ जाने पर साइकिल और सामान बह जाता है।
पिताजी और पिताजी के चचेरे भाई दोनों साइकिल को कंधे में और बोरा को सिर में उठाकर नदी पार कर रहे थे। उस दिन नदी में कहीं-कहीं गला तक पानी हो रहा था। पिताजी बताते हैं, ‘‘अचानक पिताजी के चचेरे भाई घुरनी में डूब जाता है। अंधेरे में घुरनी दिखा नहीं। नदी में जहाँ पानी घूमता है। उस जगह बहुत गड्ढा रहता है। वह जब तक घुरनी से उठा। साइकिल और बोरा पानी में बहने लगे। पिताजी तुरंत अपना बोरा और साइकिल को एक हाथ में पकड़कर दूसरे हाथ से उनका बोरा और साइकिल पकड़ ली। पिताजी भी बाढ़ के आने पर सामान और साइकिल के साथ बीस मीटर तक बह गये। लेकिन बोरा और साइकिल को पकडे़ रखा। उस दिन दोनों बहते-बहते बचकर घर लौटे।’’
चालीस फुट गहरा कुआँ तालाब में तबदील होना। आज कल्पना मात्र रह गया है। सावन-भादो में कुआँ तालाब बन जाता था। आज बीस-पच्चीस फुट नीचे ही पानी रह जाता है। बैशाख-जेठ माह में जिस कुआँ से दो-तीन खेत की सिंचाई किया जाता था। उस कुआँ में मुश्किल से पीने भर का पानी ही शेष है। गाँव से पूर्व स्थिति देववुरु नाला गर्मी के महीने में पानी बहता रहता था। जहाँ आस-पास के किसान खेती करते थे। उस नाले में गाय-बैल के पीने मात्र का पानी शेष रह गया है।
कांची नदी की बालू शहरों में बिका जा रहा है। नदी कुआँ में तबदील हो गया। पानी का स्रोत नीचे चला गया। आज कुआँ में सिंचाई करने का पानी प्रयाप्त नहीं। नदी किनारे भी खेती करना कठिन हो गया है। बालू को ले जाकर कुआँ बना दिया जाता है। उसके आस-पास ही खेती किया जा सकता है। बाकी जगह पर गर्मी के दिनों में चिंटियाँ नदी के इस पार से उस पार होती हैं।
नदी में बने कुआँ में लोग नहाने जाते हैं। जहाँ जँुड़गा गाँव की एक बूढ़ी औरत स्नान कर रही। स्नान करते-करते पैर फिसल जाने पर औरत घट-घट पानी पीने लगती हैं। उस समय आस-पास में कोई व्यक्ति नहीं था। बूढ़ी औरत मर जाती है। औरत का पेट गुब्बारा बन गया। अगले ही दिन साथ में सास-पतोहू नहाने आई। नहाते-नहाते सास का पैर फिसल जाती है। सास घट-घट कर पानी पीने लगती देख, पतोहू बचाने के लिए अंदर चली जाती है। सास को बचाने की जगह स्वयं ही घट-घट कर पानी पीने लगी। ठीक उसी समय एक ट्रैक्टर ड्राइवर गाड़ी लेकर बालू लेने पहुँचा। वह दोनों स्त्रियों की जान बचा ली।
नदी में बने कुआँ बरसात के पानी में बालू आकर पुनः भर जाता है। उस जगह पर आदमी तक अंदर चला जाता है। और किसी को पता तक नहीं लगता। एक आदमी भैंसा को धोने के लिए नदी ले जाता है। भैंसा नदी के अंदर चला जाता है। अचानक भैंसा मालिक को याद आता है कि आगे पिछले साल कुआँ बना था, जो बरसात में समतल हो गया है। वह दौड़ता हुआ, भैंसा को रोकने जाता है। भैंसा को रोकने के क्रम में दौड़ते-दौड़ते स्वयं ही डूब जाता है। दोनों भैंसा दोपहर को घर चले जाते हैं। केवल भैंसा को देख घर के सदस्य डर जाते हैं। फिर यहाँ-वहाँ खोजने लगे। दो दिन के बाद एक व्यक्ति को नदी में एक सीधा डंडा खड़ा दिखा। व्यक्ति ने उनके परिवार को यह बात बतलायी। परिवार वाले वह डंडा पहचान लेते हैं। वह हाथ में पकड़ा था। जो भैंसा को रोकने के लिए ऊपर उठाया होगा। जब बालू में घूस गया। तब हाथ ऊपर ही रहा होगा। परिवार वाले तुरंत बुलडोजर बुलाकर लाश को निकाल लेते हैं। जब बुलडोजर बालू हटाने लगा। तब उसके एक हाथ में डंडा पकड़ा ही था।
मेरे गाँव की एक औरत के साथ भी इसी तरह की घटना घटती है। वह कुछ काम पर नदी के उस पार गयी थीं। जाते समय नदी पार होने पर कोई कठिनाई नहीं हुई। लौटते समय बरसात के पानी में नए बालू के भरने से समतल कुआँँ जैसे गड्डा में पैर फंस जाता है। दोनों पैर जांघ तक बालू के अंदर चला गया। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगीं। दोपहर का समय है। संजू सुबह ही बैल को रस्सी से नदी किनारे बांधा था। नदी किनारे ही काम कर रहा। दोपहर होने पर घर जाने के लिए बैल को छोड़कर पानी पिलाने ले जा रहा। संजू के हाथ में रस्सी है। औरत को चिल्लाते देख, संजू रस्सी पकड़कर दौड़ पड़ा। संजू दूर से रस्सी औरत की ओर फेंक दिया और औरत को रस्सी पकड़ने को कहा। संजू के कठिन प्रयास से औरत की जान बच गयी।
माघ-फागुन के आते ही कुआँ का पानी नीचे चला गया। केवल पीने का पानी ही शेष है। तालाब का पानी सूख जाता है। केवल गाय-बैल के पीने भर का पानी। नदी में भी पानी बहना बंद हो गया। अब वहाँ भी खेती करना कठिन हो गया। गाँव में सड़क का निर्माण हो रहा। गाँव के किसानों में आशा जगी। अब तेल-नमक का पैसा तो सड़क में काम करके मिल जाएगा। घर में जैसे-तैसे करके जेठ-आषाढ़ तक का चावल तो हो ही जाएगा। यह सोच गाँव के सभी किसानों के चेहरों में खुशी देखने को मिली। चैत-बैशाख की चिलचिलाती धूप में सब सड़क के निर्माण में काम किये। ठेकेदार मजदूरी देने के समय आनाकानी करने लगा। वे आधार कार्ड और लेबर कार्ड मांगने लगा। किसानों ने सरकार के निर्देश पर सब लेबर कार्ड भी बना रखा है। पर कभी मजदूरी करने नहीं गये। आज मजबूरी में सब चले गये। किसानों के द्वारा सब कुछ देने के बाद भी वह चैत-बैशाख में नहीं दिया। तीन-चार माह के बाद देता है। उसमें भी सौ-पचास कम ही।
गाँव के अन्य किसान की तरह ही धीरू के दो पुत्र करमा और धरमा। दोनों शादी कर लेते ही अलग होकर अपनी-अपनी खेती करने लगे। धीरू भी सब कुछ दो हिस्से में बांट दिया है। पर कुआँ एक ही होने के कारण गर्मी के समय आते ही समस्या उत्पन्न होने लगती। धीरू ने गाँव के अन्य किसान की भाँति दोनों भाई को एक-एक दिन करके खेत की सिंचाई करने का आदेश देता। कुछ दिनों तक पिता के आदेश का पालन दोनों भाइयों ने किया। पर करमा धीरे-धीरे आधी रात तक फसल की सिंचाई करने लगा। सुबह जब धरमा मशीन लेकर कुआँ आता। तब कुआँ सूखा हुआ पाता। इस तरह करमा के बार-बार करने पर फसल की सिंचाई करने आये, धरमा को करमा पर क्रोध आ गया। वह करमा को गाली देने लगा। करमा गाली देता सुनकर आ जाता है। करमा आकर धरमा को अश्लील-अश्लील गाली देने लगा। फिर धरमा भी देने लगा। कुछ देर तक दोनों एक दूसरे को अश्लील-अश्लील गाली-गलौज करने लगे। उसी बीच करमा मारने पर उतारू हो जाता है। दोनों के बीच मारपीट होने लगी। धरमा के मुँह से खून निकलने लगा। करमा का एक हाथ टूट गया। करमा थाने के इंस्पेक्टर साहब से धरमा के खिलाफ केस दर्ज किया। करमा के पीछे-पीछे धरमा भी केस दर्ज कराने पहुँच गया। जहाँ इंस्पेक्टर साहब के सामने ही दूध का दूध और पानी का पानी हो गया।
बहरहाल इंस्पेक्टर साहब पहले करमा को कमरे के अंदर बुला लिये। और आधी रात तक कुआँ के पानी से खेत की सिंचाई करने के जुल्म में चार हजार रुपये का फाइन करते हैं। इंस्पेक्टर साहब करमा से चार हजार रुपये लेने के बाद ही छोड़ देते हैं। इंस्पेक्टर साहब करमा के घर चले जाने के बाद धरमा को बुलाकर कहा, ‘‘आज से अपनी पाली के दिन ही कुआँ में सिंचाई के लिए जाना। मैं, उसे दो-चार हंटर लगाकर भेज दिया हूँ। तुम्हें, तंग नहीं करेगा। पर उसके हाथ में गहरी चोट है। तुम्हें, इस तरह से वार नहीं करना चाहिए था। उनका हाथ टूट गया है। वह इलाज के लिए पाँच हजार मांगा है। मैं, उसे पाँच हजार रुपये दिलाने का आश्वासन देकर भेजा हूँ। वह अस्पताल से उपचार करा के आता ही होगा। उनका क्लेम तुम्हें देना ही होगा। नहीं तो हॉफमोर्डर के केस में अंदर कर दूँगा।’’
धरमा इंस्पेक्टर साहब के सामने विवश होकर पैसा देने पर मजबूर हो गया। गाँव में अक्सर दूसरे-तीसरे दिन किसी भाई-भाई या चचेरा भाई के साथ इसी तरह की लड़ाई होती है। और थाने के इंस्पेक्टर साहब गाँव के गरीब किसानों से पैसा एंट लेते हैं।
सरकार किसान के लिए कुआँ और बोरिंग की योजना तो निकालते हैं। पर वे सब उच्च वर्ग और नेता के बीच ही बंट जाते हैं। कुआँ खोदने पर तीन से चार माह लग जाता है। और बोरिंग खोदने का काम एक ही दिन में हो जाता है। अब सब किसान के मुँह से बोरिंग ही निकलने लगा है। एक-दो किसान के बोरिंग में अच्छा पानी निकल जाता है। वे अपनी क्षमता से ज्यादा खेती करने लगे हैं। अधिकांश किसानों के बोरिंग में आधे घंटे से ज्यादा मशीन नहीं चलती। एक-दो किसान को बोरिंग में पीने भर का भी पानी नहीं निकलता।
श्याम बोरिंग खोदवाता है। बहुत ही कम पानी निकला। पानी के स्तर को जानने के लिए हर सुबह-शाम रस्सी से पानी के स्तर को मापने का निर्णय लिया। सुबह उठकर जब बोरिंग में रस्सी डाला। तब पचास फुट में पानी मिला। शाम के समय पुनः रस्सी डाला। तब तीस ही फुट में पानी मिल जाता है। इसी तरह दो-चार दिन रस्सी डाल कर पानी को मापता। शाम को पानी हर दिन सामने मिलता और हर सुबह नीचे चला जाता। श्याम मन-ही-मन सोचने लगा कि आखिर सुबह पानी नीचे कैसे चला जाता है? तभी अचानक मन में कुदरा नामक एक भूत का स्मरण आता है। श्याम ने जिस मालिक से जमीन खरीदा है। उसने कुदरा पाला था। अब वह मर गया है। जब तक जीवित था। तब तक उसे किसी चीज की कमी नहीं थी। बचपन में दादी कुदरा भूत के बारे में कहानी सुनाया करती थीं। कुदरा भूत रात में अपने भार-शिका से दूसरों के घरों से धान, चावल और कभी-कभी रात का बचाखुचा मीट-मछली भी चुरा कर ले आता। कुदरा भूत चार साल के बालक जैसा दिखता। आदमी के शरीर में बालू फेंकता। बालू जहाँ-जहाँ लगता। वहाँ पर घाव हो जाता।
श्याम के मन में यह संदेह आते ही गुनी-ओझा के पास चला गया। ओझा श्याम से अगरबत्ती, घर से लायेे चावल और मिट्टी मांगता है। श्याम को ये सब पहले से पाता था कि ओझा के पास क्या-क्या लेकर जाना है? श्याम के पिताजी भी गुनी थे। ओझा माँ काली की प्रतिमा के सामने बैठकर अगरबत्ती जलाया। फिर चावल और मिट्टी को जमीन में रख लेता है। कुछ देर के लिए आँख बंद कर लिया। आँख खोलकर कहने लगा, ‘‘जिस जमीन पर तेरा बोरिंग है। वह तेरे पिताजी की जमीन है या तुम बाद में खरीदा है।’’
‘‘बाबा, मैं यह जमीन बाद में खरीदा हूँ।’’
‘‘जमीन का मालिक कोई भूत-प्रेत मानता था। जो उनका पुत्र अब नहीं मानता हो। वही भूत आज पेला कर रहा है। ठीक से याद करो!’’
‘‘बाबा, मेरे पिताजी कहते थे। बेटा, इस जमीन को मत खरीदो। चुनू कुदरा को मानता है। चुनू के मरने के बाद उसका बेटा यदि कुदरा को मानना छोड़ देगा तो तेरे साथ पेला कर सकता है।’’
‘‘हाँ! हाँ! वही कुदरा है। आज तेरे साथ पेला कर रहा है।’’
‘‘बाबा, तो मुझे अब क्या करना होगा?’’
‘‘चिंतित मत हो बेटा! तुम समय रहते ही देवी की शरण में आ गया है। दो-चार सामान लिख देता हूँ, खरीद लेना। साथ-ही एक बकरा और लाल मुर्गा भी।’’
‘‘जी बाबा!’’
‘‘हाँ! मेरी बात ध्यान से सुनो! तुम यह बात किसी के सामने नहीं बोलना। यदि किसी प्रकार से चुनू के पुत्र को पता चल गया। और वह कुदरा को पहले ही वापस बुला लिया तो अनर्थ हो जायेगा!’’
‘‘कैसे बाबा?’’
‘‘वह तेरा बोरिंग का सारा पानी इस कुदरा के माध्यम से अपना बोरिंग में लाने का आदेश दे देगा। फिर तुम लाख कोशिश कर लो! उससे छूटकारा नहीं पा सकते हो!’’
‘‘उन्हें पता नहीं चलने पर आप कुदरा को कैसे भगा सकते हैं बाबा?’’
‘‘अरे मूर्ख! तुम नहीं जानते हो, उस कुदरा को अभी कोई नहीं मान रहा है। वह इधर-उधर भटक रहा है। मैं कुदरा को देवी शक्ति के मंत्र से माटी के घड़ा में बंद करके नदी में बहा दूँगा। यदि किसी ने उस कुदरा को मानने लगा तो ऐसा करना असंभव है। उनका मालिक अपने मंत्र से गायब कर देगा। और मेरे पास आयेगा, उसका प्रतिरूप ही। जिसे मैं असली समझकर ले तो जाऊँगा। पर वह जायेगा नहीं। वह पहले से ज्यादा परेशान करने लगेगा। बोरिंग के साथ-साथ परिवार के किसी सदस्य को भी बीमार कर देगा। उसे तुम दवा तो क्या? महादवा खिला लो! फिर भी ठीक नहीं होगा। उसे भगवान तक बचा नहीं सकता। उसकी मौत निश्चित है।’’
‘‘बाबा! मैं किसी के सामने नहीं कहूँगा। आज सारा सामान खरीद लूँगा। आप कल ही मेरे घर आकर कुदरा को किसी प्रकार ले जाइए, बाबा!’’
‘‘ठीक है! मैं कल शाम को तेरा घर चला जाऊँगा।’’
श्याम घर आकर सामान का जुगाड़ करने में लग गया। बाबा के आने से पहले ही तैयार होकर बाबा का आसरा देखने लगा।
बाबा आकर बोरिंग के चारों ओर घूमा। फिर पूजा-पाठ का सामान निकालने का आदेश दिया। मन-ही-मन कुछ मंत्र पढ़ने लगे। बोरिंग के चारो दिशाओं में आवला चावल को बुनने लगे और सामने एक मिट्टी का घड़ा रखा। पहले लाल मुर्गा के सिर में सिंदूर लगाया। मुर्गा को बोरिंग के सामने चराया। बकरा को भी चराया। बकरा के कान को सूई से भोंककर एक-दो बूँद खून बोरिंग के सामने गिरा दिया। रात-भर घड़ा को लेकर घर के इधर-उधर घूमता रहा। भोर होते ही पाँच हजार का बकरा, चार सौ का मुर्गा, पाँच हजार एक सौ इक्यावन रुपये कुदरा को घड़ा में बंद करने का। और साथ में घड़ा लेकर चला गया।
श्याम बाबा के निर्देशानुसार तीन दिन बाद मशीन खरीदकर लाता है। अगले दिन मिस्त्री को सुबह ही बुला लाये। मिस्त्री आकर श्याम से पूछता है, ‘‘पानी लगभग कितने फुट पर है।’’
श्याम कुछ कहे बिना ही रस्सी निकालकर बोरिंग में डाला। पानी बाबा जी के द्वारा घड़ा में कुदरा को बंद करके ले जाने के बाद भी पहले का जैसा ही नीचे मिला। मानो क्षण-भर के लिए श्याम का प्राण निकल गया हो। मिस्त्री के दो मिनट तक कान के सामने जोर से चिल्लाने और शरीर को हिलाने-डुलाने पर भी वह मूर्ति के समान खड़ा रहा। बाद में बैठकर सारा किस्सा बता दिया। मिस्त्री बोरिंग में मशीन लगाते हुए मन-ही-मन सोचने लगा। कैसे सुबह को पानी नीचे चला जाता है। और शाम को पानी ऊपर आ जाता है। बोरिंग में मशीन लगाने का काम समाप्त ही हुआ कि मिस्त्री के मन में एक संदेह हुआ। कहीं आस-पास के बोरिंग में तो इसका पानी खींच नहीं रहा। यह बात मन में आते ही मिस्त्री श्याम से बोरिंग लगाने का चार्ज लिये बिना ही सामने वाले किसान के पास चला गया। उस किसान को बीस दिन पहले ही बोरिंग में मशीन डाल दिया था। उनसे पूछता है, ‘‘मशीन में पानी तो बढ़िया दे रहा है न?’’
किसान कहता है, ‘‘हाँ! हाँ! पानी में कोई शिकायत नहीं है।’’
मिस्त्री पुनः कहता है, ‘‘बोरिंग कब चलाते हो?’’
‘‘मैं, बोरिंग तो भोर के करीब चार बजे से चलाना शुरू करता हूँ। और दिन के दस बजे तक बंद कर देता हूँ। दस बजते-बजते ही गर्मी इतनी बढ़ जाती है कि लू लग जायेगा, ऐसा लगता है। मैं, दिन में खेत की सिंचाई नहीं करता हूँ।’’
मिस्त्री का संदेह सच ही निकला। श्याम के पास आकर कहता है, ‘‘कोई कुदरा-उदरा भूत बोरिंग का पानी भार-शिका में नहीं ले जाता। और न बाबा ने कुदरा को घड़ा में बंद करके ले गया है। बाबा ने तुझे मूर्ख बनाकर पैसा, मुर्गा और बकरा ऐंठकर चला गया। सामने वाले किसान हर दिन सुबह-सुबह बोरिंग चलाता है। हो सकता है कि दोनों के बोरिंग का कनेक्शन हो। जिस दिन वह बोरिंग सुबह स्टार्ट नहीं करेगा। उस समय मापकर जरा देखना तो!’’
श्याम दूसरे दिन भोर के चार बजे ही सामने वाले किसान के घर जाकर पूछता है, ‘‘आज अभी आप बोरिंग स्टार्ट किये क्या?’’
किसान कहता है, ‘‘नहीं! नहीं! अब करने जा रहा हूँ।’’
श्याम उसे दस मिनट के बाद मशीन चलाने को कहा और घर आकर बोरिंग का पानी रस्सी से मापा। पानी शाम को जहाँ था। अब भी पानी वहीं पर है। श्याम बाबा को गाली देने लगा, ‘‘साला! तुम बाबा बनकर घूमता-फिरता है। तेरे शरीर में कीड़े पड़े। जब तू मरेगा! तब किसी के हाथ से पानी तक न मिले। हे भगवान! इतना पानी गिराना की ढोंगी बाबा के शव को बूझा देना। उसके शरीर को अधजले ही छोड़कर सब घर चले आयें। अधजले शरीर को कुत्ता, भेड़ और सियार आदि जनवार नोंच-नोंच कर खायें।’’
कुआँ के सूख जाने और फसल के मुरझाने पर विवश किसान सुरेश पत्नी के जेबर और बैल बिक दिया। साथ-ही धान का बीज खरीदने के लिए रखा पैसा भी निकालकर बोरिंग खोदवाता है। पर बोरिंग में पानी नहीं के बराबर निकलता है। मिट्टी को दोनों हाथों में गोल-गोल करने पर लड्डू बन जाता है। बोरिंग खोदने वाले ने पैसा लेने के लिए कहा, ‘‘तीन केबी की मशीन खरीदकर डालावा लेना, पानी अच्छा देगा।’’
मशीन पाँच-पाँच मिनट में बंद होने लगी। बोरिंग का पैसा तो बेकार गया ही। अब दूसरा बोरिंग नहीं खोदवाने पर मशीन का साठ हजार भी पानी में बह जाने के समान हो गया। सुरेश दूसरा बोरिंग सूद में पैसा लेकर खोदवाता है। पर इसमें भी पानी नहीं निकला। बोरिंग गाड़ी पैसा लेकर चली गयी। सिर में हाथ लिए सुरेश बोरिंग के सामने बैठा रहा। पत्नी की जिद करने पर घर आ गया। सुरेश दिन भर मुँह में पानी तक नहीं लिया। रात को पत्नी की जिद करने पर भी खाना नहीं खाया। पत्नी भी बिन खाये सो गई। पत्नी के सो जाने के बाद सुरेश बोरिंग के सामने चला गया। पत्नी की नींद टूट गयी। पर सुरेश को घर में नहीं देखने पर दौड़तीं बोरिंग के पास चली गई। सुरेश सिर में हाथ लिए पत्थर की भाँति बैठा है। पत्नी दूर से रोती हुए जोर-जोर से पुकारने लगी। पर सुरेश कुछ नहीं बोलता। पत्नी के हिलाने-डुलाने पर भी सुरेश पत्थर की तरह हिलने-डुलने लगा। कुछ नहीं बोलने पर पत्नी जोर से अपनी ओर खींच लेती हैं। सुरेश का मृत शरीर जमीन में गिर जाता है। सुरेश की पत्नी के मुँह से केवल हे राम! निकली और पति के शरीर के ऊपर गिर गयी।
पड़ोसी किसान भाई अपने गाँव के किसानों के साथ पति-पत्नी की अरथी एक साथ निकाली। उस दिन शोक से गाँव में चूल्हा नहीं चला।
— डॉ. मृत्युंजय कोईरी

 

डॉ. मृत्युंजय कोईरी

युवा कहानीकार द्वारा, कृष्णा यादव करम टोली (अहीर टोली) पो0 - मोराबादी थाना - लालापूर राँची, झारखंड-834008 चलभाष - 07903208238 07870757972 मेल- mritunjay03021992@gmail.com