कहानी : आमने -सामने
रामनवमी के अवसर पर बिंदुधाम मंदिर में भक्तों और दर्शकों की काफी भीड़ थी।बिहार, बंगाल और अन्य राज्यों से हजारों की संख्या में लोग प्रतिवर्ष इस मंदिर में आते हैं। झारखंड के साहिबगंज जिले के बरहरवा कस्बा से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर एक टीले पर अवस्थित इस मंदिर का सौंदर्य बहुत ही मनोहारी है।
लगभग तीस साल बाद अपर्णा आई है मंदिर में पूजा करने। बचपन में और शादी के पूर्व वह प्रायः अपनी सहेलियों संबंधियों के साथ यहाँ नित्य आया करती थीं। आज अपर्णा को पुराने दिनों की यादें कुछ ज्यादा ही आ रही थीं।
“अब तो हमलोग वापस चलेंगे। बहुत से पुराने मित्रों से भेंट -मुलाकात हो गई। परंतु बार- बार फोन करने पर भी न जानें क्यों बरूण नहीं आया।” अपर्णा ने अपनी सहेली रीता से कहा। सहेली भी बरहरवा की ही थी जिसकी शादी कोलकाता में हुई है।
“अरे समय बदल गया। पुराने दोस्त भी समय के साथ बदल जाते हैं, दोस्ती की उष्णता ठंडी पड़ जाती है।” सहेली ने समझाया।
“नहीं,रीता, बरूण को मैं अच्छी तरह से जानती हूँ। वह स्वार्थी नहीं है लेकिन…!”
“तीस साल पहले के बरूण और आज के बरूण में कोई अंतर नहीं होगा?” रीता ने प्रश्न किया।
अपर्णा ने रीता के प्रश्न का जवाब नहीं दिया।
“तुमने बरूण को कितनी बार फोन किया? उसने क्या जवाब दिया ?” रीता ने अपर्णा की आँखों में झांकते हुए पूछा।
” कई बार तो फोन रिसीव ही नहीं किया। आज उम्मीद थी वह आएगा, सुबह फोन पर उनसे बात हुई थी।”
“अरे अब तो शाम होने चली है, तुम्हारी वापसी की ट्रेन भी तो सात बजे है। उन्होंने यूँ ही तुम्हें आसरा दिया होगा।”; रीता ने कहा।
” नहीं सखी, मेरा मन मानने को तैयार नहीं। भले ही बरसों से उससे मुलाकात नहीं हुई है लेकिन उसकी सज्जनता,चेहरे की मुस्कान और रेडी टू हेल्प एटीट्यूड मेरे जहन में आज भी छवि जैसी अंकित है। मेरा मन कहता है कोई विवशता होगी उसकी…।”
“सामान्य परिवार के बरूण को सरकारी नौकरी मिल गई होगी। जब हमलोग कॉलेज में पढ़ते थे वह कोचिंग और टाइपिंग का इंस्टीट्यूट चलाता था।पढ़ने में भी तेज था।” रीता ने कहा।
“हाँ सखी, उनके पास ही मैंने टाइपिंग सीखी थी।मेरी आर्थिक स्थिति को देखते हुए कभी पूरी फीस नहीं ली और बड़ी आत्मीयता से जिंदगी में कुछ बड़ा करने की सलाह भी दिया था।”अपर्णा की बातों में कृतज्ञता थी।
अचानक फोन पर बरूण का मैसेज देख अपर्णा के चेहरे पर लाली दौड़ गई। “मैं मंदिर परिसर में बरगद के नीचे तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ।” बरूण का मैसेज था।
अपर्णा अपनी सहेली के साथ बरगद के नीचे बरूण से मिलने पहुँच जाती है। ” कितने कमजोर हो गए हो बरूण?”
बरूण उठने की कोशिश की परंतु लड़खड़ा गया। अपर्णा ने उसे पकड़कर बिठाया और कहा,”कितना कष्ट किया तुमने यहाँ तक आकर मुझसे मिलने के लिए? तुमने फोन पर क्यों नहीं बताया। मैंने तुम्हें बहुत कष्ट दिया।”
“नहीं री पगली। तुम आज भी उतनी ही संवेदनशील और ममता की मूर्ति हो जितनी वर्षों पहले थी। तुमसे मिलकर बहुत खुशी हुई।”
मैं माँ बिंदुवासिनी से प्रार्थना करती हूँ तुम जल्द ही ठीक हो जाओगे।”
“धन्यवाद अपर्णा। फिजियोथेरेपी से धीरे -धीरे ही सही बहुत सुधार हुआ है। पहले तो चल फिर भी नहीं सकता था।”
“ओह। तुम्हारे बाल बच्चे कैसे हैं? भाभी जी कैसी हैं?
सभी अच्छे हैं। बड़ा बेटा जॉब में है। छोटा अभी एसएससी की तैयारी कर रहा है।”
“अपर्णा, तुम दो एक दिन ठहर जाती तो…!”
“ठहर नहीं सकती बरूण। आज ही मेरी टिकट है वापसी की। फिर कभी आऊँगी तो तुम्हारे यहाँ जरूर जाऊँगी।”
“जरूर। तुमसे मिलकर बहुत खुशी मिली। बरसों बाद अपने शहर आई हो।”
“जी, बरूण लगभग तीस साल बाद। पुरानी यादें आज भी हरी हैं।बचपन के साथियों और स्नेही जनों से मुलाकात भी हो गई।”
“अपर्णा, फोन पर बातें करते रहना। तुम्हारे पतिदेव को मेरा नमस्कार कहना। अब मैं धीरे -धीरे नीचे उतर जाता हूँ। पहाड़ी के नीचे रिक्शा वाला मेरा इंतजार कर रहा है।”
अपर्णा की आँखें भर आई थीं।
“मैं कितनी गलत थी सखी! बरूण के जाने के बाद रीता ने कहा।
— निर्मल कुमार डे