कविता

रिश्ते की जड़ों में मट्ठा डालना

रिश्ते बनाकर, धन यूँ कमाना,  तुम्हीं को जँचता है।
रिश्ते की जड़ों में मट्ठा डालना, तुम्ही को फबता है।।
प्रेम नाम पर, चोट जो मारी, हर चोट पे हँसता है।
कीकर को कह आम, बेचना, तुम्हारी सफलता है।।
काली लुगाई की, काली कमाई, लोहा चमकता है।
पुरखों की यूँ जात बदलना, जग भी हँसता है।।
धन की खातिर, धोखे के रिश्ते, बाजार भी बचता है।
दिल की कालिमा, भतीजा लालिमा, धन यूँ कमता है।।
ऊसर को कह बाग, बेचना, तुम्हीं को सजता है।
किन्नर को यूँ रति समझकर, दिल यूँ मचलता है।।
तुम्हें याद कर, अब हर छलिया, छोटा लगता है।
तलवारों से हमको, अब कोई, घाव न लगता है।।
चोर, उचक्का, झूठा, छलिया, बुरा न लगता है।
तुम्हें याद कर, गिरगिट भी, हमें अच्छा लगता है।।
नफरत की यूँ रेखा खीचना, तुम्हीं को जँचता है।
दिल का इतना सस्ता बिकना, बुरा तो लगता है।।
कानूनों का घात, प्रेम पर, छल भी हँसता है।
रिश्ते की जड़ों में मट्ठा डालना, तुम्ही को फबता है।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)