उनके बदलते अंदाज
हर मोके पर फितरत
हर चेहरे पर चारा
हर नब्ज़ ए मौसम पर !
हाल’ बदलते हैं,
जफ़ा का खंजर
ज़दा के रूबरू …
बहरहाल हर बार वो
अपनी ज़ुबान पलटते हैं,
ख़ुदी’ से गऱज़ फलक की
पैरों की ज़मीं का !
जिक्र तक नहीं …
वो तो हम दीवानों की
गली आकर भी …
अपनी चाल’ बदलते हैं,
फरेब के फेर में
फ़िराक़ हुआ बैठा फ़ुवाद’
जवाब मिलना भी …
मुनासिब नहीं लगता
बे अदब अंधेरों के पास
रोशनी का जवाब हो या ना हो
लेकिन वो ज़रूर अपने !
बाकी सवाल बदलते हैं।
— स्वामी दास