कविता

माता पिता की महिमा

न मैं मंदिर जाता न मस्जिद और न ही गुरूद्वारा जाता हूं,
रोज सुबह शाम अपने माता-पिता के चरणों को सिर्फ धोता हूं।
न नमाज़ पढा न हनुमान चालीसा और न ही गीता कुरान,
फिर भी मिल जाती है मेरी रूह को एक अलग सुकुन।
माता पिता के चरणों में ही पाया ईश्वर की एक सूरत,
फिर क्यों पुजू मैं किसी मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा की मूरत।
मां की ममता में ही समाई है जगत की ये  सृष्टि सारी,
मां के बिना अधूरे स्वयं जगत के देखो पालनहारी।
हर बार अवतार लिए और बनें मां नाम के देखो पुजारी,
मात -पिता की महिमा बड़ी ही है देखो महान,
जितना हम करें कम ही है उनका बखान।
जिनसे  मुझे प्राप्त हुआ अपार है ज्ञान।
— कुमारी गुड़िया गौतम

गुड़िया गौतम

जलगांव, महाराष्ट्र